Fri. Apr 26th, 2024

महिला दिवस विशेष : लैटिन अमेरिका में नारीवादी आंदोलनों के उभार की नई लहर

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अनेक लैटिन अमेरिकी देशों में पोषक तत्वों से युक्त भोजन (फेमिसाइड) की ऊंची दर और गर्भपात को लेकर संकीर्ण कानून के खिलाफ महिलाएं में गुस्से का लावा उबल रहा है। वे लगातार ऐसे प्रदर्शनों का आयोजन कर रही हैं जिससे लैंगिक भेदभाव मुख्यधारा की राजनीति का हिस्सा बना सके। पहले चिली, फिर मेक्सिको और पेरु के बाद अब अर्जेंटीना में भी हजारों की तादाद में महिलाओं ने सड़कों पर उतर अपने शरीर से जुड़े एक अहम फैसले को अपराध की श्रेणी से निकालने की मांग की।

इन आन्दोलनों की ताकत का अंदाजा ब्यूनस आयर्स में हुए हाल के प्रदर्शन ने साबित करने के लिए मजबूर किया है कि वह एक अखिल-महाद्वीपीय आंदोलन का हिस्सा बनने वाला है। स्थानीय स्तर पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है महिलाओं की ये मांगे बहुत अहमियत रखती है, जो उनके जीवन और उनसे पैदा होने वाली भविष्य की पीढ़ी के जीवन की गुणवत्ता पर आधारित है। आंदोलन के इस उभार की लहरें अर्जेंटीना में मुफ्त, सुरक्षित और कानूनी रूप से वैध गर्भपात के लिए एक अभियान की शुरुआत करने वाली वकील माबेल गबारा कहती हैं, “इस बार, यह ऐतिहासिक होगा।”

इस दिशा में आई थोड़ी बहुत प्रगति और अमेरिका जैसे पश्चिमी देश में महिलाओं के यौन शोषण के खिलाफ चले #मीटू अभियान की बड़ी सफलता के बावजूद अब भी लैटिन अमेरिका के तमाम देशों में हालात काफी अलग हैं। अर्जेंटीना में 2018 में संसद के निचले सदन से एक विधेयक पास हुआ जिसे सीनेट ने गिरा दिया। यह बिल था गर्भपात को अपराध की श्रेणी से निकालने का और जिस सीनेट ने इसे रद्द किया उसके 72 सदस्यों में से 30 महिलाएं थीं।

अर्जेंटीना में दिसंबर 2019 में सेंटर लेफ्ट पार्टी के नेता अलबेर्तो फर्नांडेस के नए राष्ट्रपति बनने के बाद से एक बार फिर उम्मीदें जगी हैं। उम्मीद है कि करीब एक दशक से लटके गर्भपात के अधिकार की लड़ाई में अंतत महिलाओं का पलड़ा भारी होगा। खुद फर्नांडेस कई बार ऐसा कह चुके हैं कि वे अर्जेंटीना में कानून बदले जाने के पक्ष में हैं। फिलहाल जो कानून है उसके अनुसार गर्भ केवल उस स्थिति में गिराने की अनुमति होती है जब महिला का बलात्कार हुआ हो या गर्भवती महिला की जान को खतरा हो। फ्रांस की रूएन यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाली अर्जेंटीना की इतिहासकार लिसेल कुइरोज-पेरेज कहती हैं, “फेमिनिस्ट आंदोलनों का इतिहास देखिए तो पता चलता है कि प्रदर्शनकारियों को अपनी बात मनवाने के लिए बहुत दबाव बनाना पड़ता है।”

ब्यूनोस आयर्स में प्रदर्शन में चिली का फेमिनिस्ट कलेक्टिव लास-तेसिस भी शामिल हुआ। यह वही समूह है जिसने बीते नवंबर में अपने देश में किए प्रदर्शन में एक गाना गाया तो वह विश्व भर में फैल गया। गीत था “द रेपिस्ट इज यू,” जिसमें राजनीतिक परिपेक्ष्य को दिखाते हुए महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा का चित्रण किया गया था। जिस जिस देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को लेकर सख्त कानून नहीं हैं, वहां वहां यह गीत एक तरह का एंथम बना कर गाया गया।

सन 2017 में चिली में एक नया कानून लाया गया जिसमें उस स्थिति में महिला को कानूनन गर्भपात का अधिकार दिया गया जिसमें या तो बलात्कार के कारण गर्भ ठहरा हो या फिर उससे मां या होने वाले बच्चे की जान को खतरा हो। माइल्स फेमिनिस्ट चैरिटी की निदेशक क्लाउडिया डाइड्स कहती हैं, “हमारे पास आज भी महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के लिए कोई कानून नहीं है।” वह कहती हैं कि “हमारी संसद को आज भी समझ नहीं आता कि ऐसी हिंसा को मिटाना कितना जरूरी है।”

लैटिन अमेरिका के अलग अलग देशों में गर्भपात को लेकर बहुत अलग कानून हैं। उरुग्वे, क्यूबा और मेक्सिको में गर्भपात करवाना पूरी तरह कानूनी है। वहीं सेंट्रल अमेरिका के ज्यादातर इलाकों में इस पर पूरी तरह प्रतिबंध है। जैसे कि अल सल्वाडोर में गर्भपात हो जाने पर किसी महिला को जेल में डाला जा सकता है। कोलंबिया में मामला सुप्रीम कोर्ट में है कि वहां इसे कानूनी मान्यता दी जानी चाहिए या नहीं।

2018 के अंत में मेक्सिको की वामपंथी सरकार ने फेमिनिस्ट कार्यकर्ताओं को उम्मीद दी थी कि महिलाओं के साथ हिंसा को लेकर कानून बनेगा। केवल 2019 में ही 1,000 से ज्यादा फेमिसाइड हुए, जिनमें से दो बहुत ज्यादा क्रूर हत्याएं थीं – इनमें से एक सात साल की बच्ची थी। मेक्सिको की नारीवादी कार्यकर्ताएं अपने राष्ट्रपति आंद्रेस मानुएल लोपेज पर प्रभावी नीतियां बनाने का दबाव बना रही हैं। पेरु में भी साल 2019 में जितनी महिलाओं की हत्या हुई उतनी पूरे एक दशक में नहीं हुई थीं।

कुइरोज-पेरेज का कहना है, “लैटिन अमेरिका में नारीवादी आंदोलन इस समय काफी रफ्तार पकड़ चुके हैं। यहां इस बारे में जानकारी देने और लोगों को साथ लाने का काम दुनिया के दूसरे देशों से बेहतर तरीके से हो रहा है।” इनका ही असर है कि कई लैटिन देशों में “पायनियर लॉ” पास हुए हैं जिनसे बराबरी का हक मिलेगा और महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटा जा सकेगा।

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