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महिला दिवस : सेना की बहादुर महिलाएं 

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8 मार्च 2020 को पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीेय महिला दिवस मना रही है। लेकिन हम बात फरवरी 2016 से शुरू करेंगे। तत्काुलीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने घोषणा की कि महिलाओं को भारतीय सशस्त्र बलों के सभी वर्गों में कॉम्बै ट रोल यानी युद्ध लड़ने की अनुमति दी जाएगी। यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और पुरुष-प्रधान समाज में लैंगिक समानता की ओर बड़ा कदम था। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि महिलाएं इससे पहले सेना में प्रभावी भूमिका नहीं निभा रही थीं। 

पुनीता अरोड़ा

लाहौर के पंजाबी परिवार में पैदा हुईं पुनीता तब 12 साल की थीं, जब विभाजन के दौरान उनका परिवार यूपी के सहारनपुर आकर बस गया। लेफ्टिनेंट जनरल पुनीता अरोड़ा भारतीय सशस्त्र बलों में दूसरे सबसे बड़े रैंक (लेफ्टिनेंट जनरल) को पाने वाली देश की पहली महिला हैं। वह भारतीय नौसेना की पहली वाइस एडमिरल भी हैं। इससे पहले वह 2004 में सशस्त्र बल मेडिकल कॉलेज की कमांडेंट थीं। वह सशस्त्र बलों के अतिरिक्त महानिदेशक के रूप में सशस्त्र बलों के लिए चिकित्सा अनुसंधान की को-ऑर्डिनेटर भी रही हैं। बाद में वह सेना से नौसेना में चली गईं, क्योंकि एएफएमएस में अधिकारियों को आवश्यकता के आधार पर एक सेवा से दूसरी सेवा में जाने की अनुमति है। की शान और देश की आन-बान में चार चांद लगाए हैं।

प्रिया सेमवाल

प्रिया सेमवाल के पति सेना में थे। एक काउंटर-इंसर्जेंसी ऑपरेशन में उन्हों ने पति नाइक अमित शर्मा को खो दिया। वह देश के सैन्यु अध‍िकारी की पत्नीा के तौर पर सेना में बतौर अध‍िकारी सेवा देने वाली पहली महिला हैं। उन्हेंइ 2014 में कोर ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड मैकेनिकल इंजीनियरिंग (आर्मी) में शामिल किया गया। तब 26 साल की प्रिया सेमवाल की बेटी ख्वापहिश शर्मा 4 साल की थी। उनके पति नाइक अमित शर्मा 14-राजपूत रेजिमेंट के साथ सेवा दे रहे थे। साल 2012 में अरुणाचल प्रदेश में तवांग पहाड़ी के पास आतंकवाद रोधी अभियान के दौरान उन्‍होंने देश के लिए अपनी जान दे दी। पति की याद में अपनी मातृभूमि के लिए प्याहर जताते हुए प्रिया सेना में शामिल हुई।

पद्मावती बंदोपाध्याीय

 

आंध्र प्रदेश के तिरुपति में जन्मीा पद्मावती बंदोपाध्याय भारतीय वायु सेना की पहली महिला एयर मार्शल थीं। उन्होंने 1968 में वायु सेना जॉइन की थी। साल 1978 में उन्होंहने डिफेंस सर्विस स्टाफ कॉलेज कोर्स पूरा किया। ऐसा करने वाली वह पहली महिला अधिकारी बन गईं। इतना ही नहीं, वह एविएशन मेडिसिन विशेषज्ञ बनने वाली पहली महिला अधिकारी थीं। इसके अलावा उत्तरी ध्रुव पर वैज्ञानिक अनुसंधान करने वाली वह पहली महिला थीं और एयर वाइस मार्शल के पद पर पदोन्नत होने वाली पहली महिला रही हैं। पद्मावती बंदोपाध्यारय को साल 1971 के भारत-पाकिस्ता न संघर्ष के दौरान सराहनीय सेवा के लिए विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया गया।

अंजना भादुरिया

अंजना भादुरिया भारतीय सेना में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली महिला हैं। वह हमेशा से भारतीय सेना में अधिकारी बनना चाहती थीं। माइक्रोबायोलॉजी में एमएससी की डिग्री लेने के बाद अंजना ने वुमन स्पेतशल एंट्री स्कीजम (डब्ल्यूएसईएस) के जरिए सेना में शामिल हुईं। 1992 में भारतीय सेना में महिला कैडेटों के पहले बैच को स्वीकार किया गया, अंजना इसी का हिस्साय बनीं। प्रशिक्षण के दौरान अंजना ने हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, जिस कारण उन्हेंक गोल्डअ मेडल के लिए चुना गया। वह एक ऐसे बैच का हिस्सास थीं, जिसमें पुरुष और महिला दोनों थे। अंजना ने 10 साल तक भारतीय सेना में सेवा दी।

मिताली मधुमिता

फरवरी 2011 में, लेफ्टिनेंट कर्नल मिताली मधुमिता को उनकी वीरता के लिए सेना पदक मिला। यह पदक पाने वाली वह देश की पहली महिला अधिकारी बनीं। यह मेडल सैनिकों को जम्मूी एवं कश्मीहर और पूर्वोत्तर में अनुकरणीय साहस के साथ ऑपरेशन पूरा करने के लिए दिया जाता है। मधुमिता, काबुल में सेना की इंग्लिश लैंग्वेज ट्रेनिंग टीम का नेतृत्व कर रही थीं। जब फरवरी 2010 में काबुल स्िवेजत भारतीय दूतावास पर आत्मजघाती हमला हुआ, तब वह वहां पहुंचने वाली पहली अधिकारी थीं। निहत्थे होने के बावजूद वह करीब 2 किमी दौड़कर मौके पर पहुंचीं। मधुमिता ने वहां मलबे में दबे सैन्य  प्रशिक्षण टीम के 19 अधिकारियों को खुद निकाला और उन्हें अस्पताल ले गईं।

प्रिया झिंगान

21 सितंबर, 1992 को प्रिया झिंगन भारतीय सेना में शामिल होने वाली पहली महिला कैडेट बनीं। लॉ ग्रेजुएट प्रिया ने हमेशा से सेना में शामिल होने का सपना देखा था। 1992 में उन्होंने खुद आर्मी चीफ को एक चिट्ठी लिखी और उसमें सेना में महिलाओं की भर्ती के लिए अपील की। उनकी बात मान ली गई। प्रिया के साथ 24 नई महिला भर्तियों ने यहीं से अपनी यात्रा शुरू की। जब प्रिया झिंगान सेवानिवृत्त हुईं तो उन्होंाने कहा, ‘यह एक सपना है जो मैं पिछले 10 वर्षों से मैं हर दिन जी रही हूं।’

दिव्या अजित कुमार

21 साल की उम्र में दिव्या अजित कुमार ने बेस्टं ऑल-राउंड कैडेट का अवॉर्ड जीता। इसके लिए उन्हों्ने 244 साथी कैडेट्स (पुरुष और महिला) को हराया और प्रतिष्ठित ‘सोर्ड ऑफ ऑनर’ प्राप्त किया। यह ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी के द्वारा किसी कैडेट को दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। ‘सोर्ड ऑफ ऑनर’ प्राप्त करने के लिए मेरिट लिस्ट में अव्वरल आना होता है। इसमें पी.टी. टेस्टि, हाईयर पी.टी. टेस्टक, स्वीसमिंग टेस्टर, फील्ड  ट्रेनिंग, सर्विस सब्जेवक्ट्सा, ऑब्स,टेकल ट्रेनिंग, ड्रिल टेस्ट्स , क्रॉस-कंट्री इनक्लोनजर जैसी चीजें शामिल हैं। भारतीय सेना के इतिहास में यह सम्मान जीतने वाली पहली महिला कैप्ट न दिव्या अजित कुमार ने 2015 में गणतंत्र दिवस परेड के दौरान 154 महिला अधिकारियों और कैडेटों की एक सर्व-महिला दल का नेतृत्व किया।

निवेदिता चौधरी

फ्लाइट लेफ्टिनेंट निवेदिता चौधरी भारतीय वायु सेना (IAF) की पहली महिला बनीं जिन्होंने माउंट एवरेस्टा फतह किया। यह उपलब्धि हासिल करने वाली वह राजस्थान की पहली महिला भी हैं। अक्टूबर 2009 में निवेदिता IAF अधिकारी के तौर पर आगरा में स्क्वाड्रन में शामिल हुई थीं। भारतीय वायु सेना के एक महिला अभियान के लिए स्वयंसेवकों के तौर पर उन्हों ने एवरेस्ट कार्यक्रम का हिस्सान बनीं। तीन साल बाद उन्होंनने वह कर दिखाया, जो वायु सेना में किसी महिला ने कभी नहीं किया था। उनकी टीम की अन्य महिलाएं, स्क्वाड्रन लीडर निरुपमा पांडे और फ्लाइट लेफ्टिनेंट राजिका शर्मा, पांच साल बाद भी एवरेस्ट् तक पहुंचीं।

 

 

 

 

 

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