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1917 में रूस की फरवरी क्रांति का एलान ही अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का आधार

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रूस में 1917 की फरवरी क्रांति ही आगे चलकर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की तारीख का आधार बनी। निकोलस जार द्वितीय की बढ़ती ज्यादितियों के कारण जब 50 कारखानों के मजदूरों ने तालाबंदी कर आंदोलन शुरू किया तो इन मजदूरों में ज्यादातर क्रांति की मशाल महिलाओं ने सम्हाली। 22 फरवरी की तालाबंदी ने अगले दिन 23 को एक बड़े आंदोलन का रूप ले लिया। ग्रेगेरियन कैलेंडर में यह दिन 8 मार्च था और उसी के बाद से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाने लगा।

8 मार्च को पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है। इस दिन सम्पूर्ण विश्व की महिलाएं देश, जात-पात, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं। भारत में पहले महिलाएं अपने हक में कम ही बोलती थी, वहीं आज इक्कीसवीं सदी की स्त्री ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है और काफी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख लिया है। आज ही महिलाओं ने साबित कर लिया है वह हर क्षेत्र में अपना नाम बनाने में सक्षम है।

1917 में युद्ध के दौरान रूस की महिलाओं ने ‘ब्रेड एंड पीस’ यानी रोटी और शांति की मांग के साथ क्रांति की मशाल उठाई थी। महिलाओं की इस हड़ताल ने रूस के सम्राट निकोलस को पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया और अंतरिम सरकार ने महिलाओं को मतदान का अधिकार दे दिया। उस समय रूस में जूलियन कैलेंडर का प्रयोग होता था। जिस दिन महिलाओं ने यह हड़ताल शुरू की थी, वह तारीख 23 फरवरी थी। ग्रेगेरियन कैलेंडर में यह दिन 8 मार्च था

रूस और दूसरे कई देशों में इस दिन के आस-पास फूलों की कीमत काफी बढ़ जाती है। इस दौरान महिला और पुरुष एक-दूसरे को फूल देते हैं।।चीन में ज्यादातर ऑफिस में महिलाओं को आधे दिन की छुट्टी दी जाती है। वहीं अमरीका में मार्च का महीना ‘विमेन्स हिस्ट्री मंथ’ के तौर पर मनाया जाता है।

8 नहीं 10 मार्च का दिवस
भारत में लंबे समय से आठ मार्च की जगह 10 मार्च को भारतीय महिला दिवस मनाया जाता है। इसके पीछे एक खास वजह है। ये खास वजह है कि इस दिन 19वीं सदी में स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल या विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों पर आवाज उठाने वाली देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले का स्मृति दिवस होता है।

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