विश्वास के संकट से जूझ रहा विश्व व्यापार संगठन
1 min read- आज के ही दिन किया गया था डब्ल्यूटीओ का गठन, 25वीं वर्षगांठ
नई दिल्ली| विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का गठन आज ही के दिन 1 जनवरी, 1995 को किया गया था और दूसरे विश्व युद्घ के खत्म होने के बाद अंतरराष्ट्रीय व्यापार में यह सबसे बड़े सुधार के रूप में लिया गया था। अब इसकी 25वीं वर्षगांठ पर इसी संस्था में सुधार कई देशों के व्यापार एजेंडे में सबसे ऊपर है। इनमें अमीर और गरीब दोनों तरह के देश शामिल हैं।
डब्ल्यूटीओ में दुनिया का भरोसा ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया है। व्यापार एवं तटकर पर सामान्य समझौता (गैट) उत्पादों के व्यापार के लिए था लेकिन डब्ल्यूटीओ ने अपना दायरा श्रम, पर्यावरण और बौद्धिक संपदा तक फैला दिया। स्वतंत्र एवं निष्पक्ष व्यापार की अपनी सक्षम नीतियों के माध्यम से इसे कुछ वर्ष पहले तक सभी देशों को परामर्श देने के लिए एक मंच प्रदान करने का श्रेय दिया गया था।
लेकिन अंतरराष्ट्रीय व्यापार के कई खेमों में बंटने के बाद डब्ल्यूटीओ की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं। अमेरिका, यूरोपीय संघ, चीन और रूस जैसी दिग्गज अर्थव्यवस्थाओं में ने अपने अलग खेमे बना लिए हैं।
इस बहुस्तरीय संस्था पर हमले के अगुआ अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप रहे हैं। डब्ल्यूटीओ विभिन्न खेमों के बीच टकराव को खत्म करने में नाकाम रहा है जिससे दुनिया के सभी देश प्रभावित हुए हैं। विभिन्न देशों के बीच व्यापारिक विवादों के लिए गठित डब्ल्यूटीओ की शीर्ष अदालत भी दिसंबर की शुरुआत में निष्क्रिय हो गई। पहली बार ऐसा हुआ है।
सात न्यायाधीशों वाली इस अपीलीय संस्था के बचे हुए तीन सदस्यों में से दो सेवानिवृत्त हो गए और इसके साथ ही यह संस्था निष्क्रिय हो गई। यह अरबों डॉलर के वैश्विक व्यापारिक विवादों को निपटाने के लिए सबसे बड़ी न्यायिक संस्था है। इसे बहुस्तरीय व्यापारिक व्यवस्था का मुख्य स्तंभ माना जाता है और वैश्विक अर्थव्यवस्था के स्थायित्व के लिए डब्ल्यूटीओ का अनोखा योगदान माना जाता है। पिछले दो दशक में इस अपीलीय संस्था ने वैश्विक व्यापार के प्रवाह को आकार दिया है। लेकिन भारत और 116 अन्य देश अमेरिका को यह समझाने में नाकाम रहे हैं कि वह नए न्यायाधीशों की नियुक्ति के खिलाफ लंबे समय से आ रहा अपना विरोध छोड़ दें। इसके लिए सभी देशों के निर्विरोध समर्थन की जरूरत होती है।
लेकिन पिछले तीन वर्षों से अमेरिका ने डब्ल्यूटीओ के खिलाफ विरोध का झंडा बुलंद कर रखा है। उसका कहना है कि इस संस्था ने अमेरिका और विकसित देशों के व्यापक हितों की अनदेखी की है। यह विरोध तबसे और तेज हो गया है जबसे डब्ल्यूटीओ ने अमेरिका द्वारा चीन और अन्य व्यापारिक साझेदारों पर लगाए गए एकतरफा शुल्क की आलोचना की है।
डब्ल्यूटीओ में भारत के पूर्व राजदूत जयंत दासगुप्ता ने पहले कहा था, ‘अमेरिका के बड़ा खेल खेल रहा है। एक तरफ वह इस विवाद निपटान संस्था में याचिका दायर कर रहा है और दूसरी ओर उसके न्यायाधीशों की नियुक्ति रोक रहा है।’ अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटहाइजर लगातार डब्ल्यूटीओ पर हमले करते रहे हैं। उनका आरोप है कि यह संस्था अमेरिका के प्रति निष्पक्ष नहीं है। दिलचस्प बात है कि लाइटहाइजर को 16 वर्ष पहले अपीलीय संस्था में नामांकित किया गया था। हालांकि दूसरे देशों के विरोध के बाद उनकी नियुक्ति नहीं हो पाई थी।
2019 में उन्होंने डब्ल्यूटीओ के बजट में कटौती की धमकी दी और इस संस्था में चीन के प्रवेश को गलती बताया। साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि अगर अमेरिका की मांगों को नहीं माना गया तो वह डब्ल्यूटीओ से निकल जाएगा। लेकिन वैश्विक व्यापार विवादों को निपटाने की एकमात्र संस्था के तौर पर डब्ल्यूटीओ की क्षमता लंबे समय से क्षीण होती जा रही है। अभी मामलों की सुनवाई में एक साल से अधिक समय लगता है जबकि सरकारें और व्यापार अधिकारी जेनेवा में डेरा डाले रहते हैं। दूसरी ओर छोटे देश खुद को अलग-थलग मानते हैं। उनकी शिकायत रहती है कि उनके मुद्दों को डब्ल्यूटीओ में ज्यादा तरजीह नहीं मिलती है।