Thu. May 2nd, 2024

अचानक लॉकडाउन से सरकार की संवेदनशीलता पर सवाल!

1 min read
  • संजीव पांडेय

सरकारी मदद की घोषणा तब हुई जब लाखो मजदूरो ने अपने परिवारो के साथ पैदल ही गांवों – घरों के लिए कूच कर दिया है। देश के विभिन्न राजमार्गो पर अचानक उभरी इन कतारों को देखे तो सरकार की सम्वेदनाओं और उसके दावों की असलियत सामने आ जाती है। साथ ही साथ सरकारी मशीनरी के सतहीपन को भी उजागर करती है। बुनियाद जरूरतों से जूझते संकट काल में मजदूरो का विश्वास कायम रखने में सरकारों की नाकामियोँ के चलते मजदूरों का घरों के लिए पलायन आज भी जारी है। यह स्थिति भयावह है और सरकार की लाचारी दर्शाती है।

देर से ही सही, सरकार को अपनी भूल का एहसास हुआ है और विशेष ट्रेनों की मदद से मजदूरों को उनके गृह जिलों में पहुंचाने की कवायद शुरू हुई है। गृह मंत्रालय की ओर से जारी गाइडलाइन के बाद रेल मंत्रालय ने छः स्पेशल श्रमिक ट्रेन को चलाने का एलान किया है। छः ट्रेनों की संख्या तत्कालिक या सरकार के किसी रणनीति का हिस्सा हो सकती है। हो सकता है कि सरकार समय के साथ इस संख्या में इजाफा करें।

देशव्यापी मजदूरों की संख्या को देखते हुए यह संख्या नाकाफी है। अकेले बिहार राज्य से पच्चीस लाख अप्रवासी मजदूरों के विभिन्न राज्यो में फंसे होने का अनुमान है। सोशल डिस्टेंसिंग की शर्त पालन के साथ मजदूरों की वापसी की बात सरकार पहले ही कह चुकी है। जाहिर है कि ट्रेनों की क्षमता से कम संख्या में यह ट्रेन मजदूरों की यात्रा के लिए उपलब्ध होगी।

देश में लगभग चालीस दिनों के लॉकडाउन का काल पूर्ण हो चुका है। इस दौरान विभिन्न शहरों में फंसे मजदूर परिवार की त्रासदी का जो रूप सामने आया है वह हमारी सम्वेदनाओ को जगजाहिर कर चुका है। इस दौरान लाखो मजदूर सैकड़ो किलोमीटर की दूरी तयकर घरों की यात्रा के लिए निकल पड़े है, जिनमे बड़ी तादाद में महिलाएं और बच्चों की शुमारी है। इनके स्वास्थ की स्थिति भी अच्छी नहीं मानी जा सकती जबकि हजारों किलोमीटर के बीच खाने पीने, सोने स्वास्थ और सुरक्षा की चुनौतियों से उन्हें रूबरू होना है।

यह परिस्थिति दर्शाती है कि आर्थिक उन्नति के ढिढोरा के बीच देश में मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा की दशा ठीक नही है। इस गम्भीर सवाल का जवाब सरकार के साथ-साथ समाज को भी ढूढ़ना होगा?

लॉक डाउन से उत्पन्न परिस्थितियों का आंकलन में सरकार से भारी चूक हुई है। भारत के संदर्भ में कहा जा सकता है महामारी के संकट का आभास सरकार को जनवरी 2020 के दौरान हो चुका था और वह लॉक डाउन के विकल्प से भी वाकिब थी। तब की स्थिति में देश में संक्रमण का स्तर भी न के बराबर ही था।

लेकिन मामूली उपायों के साथ सरकार जैसे किसी अप्रिय स्थिति के इंतजार में थी और अचानक से पूर्ण लॉक डाउन की घोषणा के साथ विषम स्थिति का एलान कर दिया। उससे लॉक डाउन के लम्बा खींचने जैसी परिस्थिति का भान न था! साथ ही सरकार द्वारा इस तथ्य की भी उपेक्षा की गई कि देश की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा अप्रवासी मजदूर के रूप में निवासरत है। जिनको लंबे समय तक रसद पंहुचाने के सरकारी संसाधनों का नितान्त अभाव है और बिना समुचित मदद के गरीब मजदूरों को घर दूर किसी एक स्थान पर रोकना सम्भव नहीं होगा।

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