एनआरसी के साथ सीएए भारत के मुसलमानों के दर्जे को कर सकता है प्रभावित
1 min read- कांग्रेशनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) की रिपोर्ट
- भारतीय संविधान के कुछ अनुच्छेद खासकर अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन संभव
वाशिंगटन| सीआरएस ने अपनी एक रिपोर्ट के जरिये कहा है कि भारत सरकार द्वारा संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के साथ लाने से भारत के लगभग 20 करोड़ मुस्लिम अल्पसंख्यकों का दर्जा प्रभावित हो सकता है। सीआरएस की यह रिपोर्ट 18 दिसंबर को आई है। इसमें कहा गया कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार देश की नागरिकता संबंधी प्रक्रिया में धार्मिक पैमाने को जोड़ा गया है।
उल्लेखनीय है, सीआरएस अमेरिकी कांग्रेस की एक स्वतंत्र रिसर्च यूनिट है जो घरेलू और वैश्विक महत्व के मसलो पर समय-समय पर रिपोर्ट तैयार करती है ताकि सांसद उनसे जुड़े फैसले ले सकें। लेकिन यह भी सच है की इसे अमेरिकी कांग्रेस की आधिकारिक रिपोर्ट नहीं माना जाता है। संशोधित नागरिकता कानून के मुताबिक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न से बच कर 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है।
सीआरएस ने दो पन्नों की अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘‘भारत का नागरिकता कानून 1955 अवैध प्रवासियों के नागरिक बनने को प्रतिबंधित करता है। तब से इस कानून में कई संशोधन किए गए लेकिन उनमें से किसी में भी धार्मिक पहलू नहीं था।’’
सीआरएस का दावा है कि संशोधन के मुख्य प्रावधान जैसे कि तीन देशों के मुस्लिमों को छोड़कर छह धर्मों के प्रवासियों को नागरिकता की अनुमति देना भारत के संविधान के कुछ अनुच्छेद खासकर अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन कर सकता है।
इसमें कहा गया, ‘‘कानून के समर्थकों का तर्क है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान में मुस्लिमों को उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ता और सीएए संवैधानिक है क्योंकि यह भारतीय नागरिकों नहीं प्रवासियों से संबंधित है। हालांकि यह साफ नहीं है कि अन्य पड़ोसी देशों के प्रवासियों को इससे बाहर क्यों रखा गया है। इसके अलावा पाकिस्तान के अहमदिया और शिया जैसे मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों को सीएए के तहत कोई संरक्षण प्राप्त नहीं है।’’