लॉक डाउन से दूध और सब्जी कारोबारियों तक का हाल ख़राब
1 min readभारत एक कृषि प्रधान देश के साथ दूध उत्पादन के मामले में दुनिया में पहले नंबर पर है। रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर दिन 50 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता है। लेकिन लॉकडाउन की वजह से दूध की मांग घटी है और किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
- नई दिल्ली। एक रिपोर्ट के मुताबिक हर दिन 50 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन करने वाले भारत में दूध उत्पादक किसान इसका एक बड़ा हिस्सा अपने इस्तेमाल के लिए रख लेता है और करीब 10 करोड़ लीटर दूध अलग-अलग सहकारी समितियों के जरिए बेच दिया जाता है, बाकी बचे दूध को खुदरा बाजार में बेचा जाता है। जैसे होटल, हलवाई और रेस्तरां इत्यादि। इससे उनके रोज के खर्च निकल आते हैं।
इस वक्त पशुपालक और दूध कारोबारियों को संकट ने चारों ओर से घेर रखा है। अनेक निजी डेयरियां मैदान छोड़ कर जा चुकी हैं। कई जगहों पर दूध उत्पादक किसानों को डेयरी से पैसे नहीं मिल रहे हैं। डेयरियों ने दूध तो ले लिया लेकिन अब पैसे नहीं दे रही हैं। साथ ही पशुओं का चारा महंगा हो गया है और उसकी उपलब्धता कठिन हो गई है
लॉकडाउन का असर
लॉकडाउन के कारण दूध की बिक्री पर बहुत अधिक असर पड़ा है। जानवर अगर बीमार हो जाते हैं तो पशु चिकित्सक गांव तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। यही पशु चिकित्सक बीमार जानवरों को देखने के लिए पहले बहुत आसानी से आ जाते थे।”
जब लॉकडाउन हुआ था तो दूध को जरूरी चीजों में रखा गया था, लेकिन शुरू में कलेक्शन सेंटर में पहुंचने में लोगों को दिक्कतें पेश आई थी। उस समय में दूध को कलेक्शन सेंटर तक पहुंचाने के लिए किसान भी घर से थोड़ा कम निकला। जिसका असर देखने को मिला।
लॉकडाउन की वजह से निजी डेयरी, हलवाई और रेस्तरां में फुटकर खरीद प्रभावित होने से इस क्षेत्र को काफी नुकसान हुआ है। पहले जहां किसान निजी डेयरी से लेकर रेस्तरां, बेकरी, हलवाई को दूध सप्लाई कर देते थे वहीं अब उन्हें लॉकडाउन के खत्म होने का इंतजार करना पड़ रहा है। शहरों में मिठाई की दुकानें, रेस्तरां, होटल, शादी और अन्य कार्यक्रम नहीं होने के कारण मांग में भारी गिरावट दर्ज की गई है।
गर्मी के मौसम में दूध की खपत के कई कारण हैं, जैसे कि शादी, होटल-रेस्तरां में इस्तेमाल, आइसक्रीम उत्पादन और मिल्क शेक उत्पादन, लेकिन लॉकडाउन की वजह से भारी मांग ठप्प हो गई है। बच्चे स्कूल-कॉलेज जाने के पहले दूध पीकर जाते थे लेकिन अब वह भी बंद है। घर-घर दूध सप्लाई करने वाले को लेकर भी चिंता बढ़ी है, लोग संक्रमण के डर से रोजाना दूध लेने से हिचक रहे हैं। बाहरी संपर्क से बचने के लिए लोग दूध खरीदने से हिचक रहे हैं। हमें इसका भी समाधान निकालना पड़ेगा।
खर्च भी नहीं निकल पा रहे किसान
पशुपालकों और दूध कारोबारियों के जो रोज के खर्च दूध बेचकर पहले आसानी से निकल जाया करते थे, वह निकलना बंद हो गए हैं। गांव में भी दूध का उत्पादन अधिक होने से मांग कम हो गई है और पशुपालकों को रोज रोज की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वहीं नवरों का चारा नहीं मिल रहा है और मिल भी रहा है तो वह महंगा मिल रहा है। दूध उत्पादन का करीब 30 फीसदी हिस्सा पनीर, खोया, दही के लिए भी इस्तेमाल होता है। कुछ प्रतिशत दूध का इस्तेमाल पाउडर बनाने के लिए भी होता है। ऐसे में मांग ना के बराबर होने से किसानों की आय पर गहरी चोट लगी है और वे पूरी तरह से लॉकडाउन खत्म होने के बाद हालात सामान्य होने पर निर्भर हैं। एक अनुमान के मुताबिक लॉकडाउन की वजह से देश के 10 करोड़ दुग्ध उत्पादकों पर मंदी के बादल छा गए हैं।
सब्जी पोल्ट्री भी प्रभावित
दूध ही नहीं फल, सब्जी, मीट और पॉल्ट्री जैसे कृषि और सहयोगी क्षेत्रों के उत्पादों को लॉकडाउन की भारी मार से गुजरना पड़ रहा है। मांग घटने और ट्रांसपोर्ट और भंडारण की समस्या के चलते इन उत्पादों के किसानों को हजारों करोड़ के नुकसान की आशंका है। हालांकि कुछ राज्य किसानों की मदद के लिए आगे आए हैं और अतिरिक्त दूध खरीदकर मिल्क पाउडर भी बना रहे हैं। दूसरी ओर राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड पशु चारे के उत्पादन में काम आने वाली सामग्री की कमी से निपटने के लिए ग्रामीण इलाकों में पशुचारा प्लांट को स्थानीय सामग्री इस्तेमाल करने की तकनीक और तरीके बता रहा है।
देश में लॉकडाउन के तीसरे चरण खत्म होने के बाद ही दूध किसानों के हालात सामान्य होने की संभावना है। अतुल मेहरा को उम्मीद है कि लॉकडाउन के खत्म होने के बाद सबसे पहले डेयरी इंडस्ट्री और दूध किसान को हालात सामान्य होने का लाभ मिलेगा और यह उद्योग फिर से गति पकड़ेगा।