Wed. May 1st, 2024

भारतीय महिला वैज्ञानिकों के नाम पर स्थापित होंगी चेयर

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  • भारत सरकार ने विज्ञान के क्षेत्र में योगदान देने वाली उन 11 भारतीय महिला वैज्ञानिकों को गुमनामी के अंधेरे से बाहर लाने के लिए भारत के प्रतिष्ठित संस्थानों में उनके नाम पर चेयर की स्थापना का निर्णय लिया है। भारतीय विज्ञान के इतिहास में गुम होने वाली इन महिला हस्तियों को इसलिए भी याद करने की जरुरत शायद इसलिए भी महसूस हुई होगी, ताकि 8 मार्च को करीब आ रहे अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की सार्थकता को बल मिल सके।

    सन 1930 में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले भारतीय वैज्ञानिक सीवी रमन के साथ काम कर चुकीं महिला वैज्ञानिक अन्ना मणि एक मौसम वैज्ञानिक थीं और उन्हीं के मार्गदर्शन में वो कार्यक्रम बना जिसकी मदद से भारत मौसम विज्ञान के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो पाया। अन्ना के ही जैसी कहानी है कई भारतीय महिलाओं की जो दशकों पहले कई चुनौतियों के बावजूद ना सिर्फ शिक्षा हासिल करके वैज्ञानिक बनीं बल्कि अपने-अपने क्षेत्रों में दूसरों के लिए भी रास्ता खोलने वाला काम किया।

भारत सरकार देश में अलग-अलग विज्ञान संबंधी संस्थाओं में इन्हीं महिला वैज्ञानिकों में से 11 के नाम पर चेयरों की स्थापना करेगी। इन चेयरों के लिए अलग-अलग विषयों को चुना गया है, जिनमें कृषि, बायोटेक्नोलॉजी, इम्यूनोलॉजी, फाइटोमेडिसिन, बायोकेमिस्ट्री, चिकित्सा, सामाजिक विज्ञान, पृथ्वी विज्ञान और मौसम विज्ञान, इंजीनियरिंग, गणित और भौतिकी और फंडामेंटल रिसर्च।

सन 1932 में जन्मी डॉक्टर अर्चना शर्मा एक जानी मानी साइटोजेनेटिस्ट थीं। उन्होंने क्रोमोजोम के अध्ययन के लिए एक नई तकनीक का विकास किया था। वो ‘क्रोमोजोम टेक्निक्स: थी-थ्योरी एंड प्रैक्टिस’ नामक बहुचर्चित किताब की लेखिका थीं और साइटोलॉजी के अंतरराष्ट्रीय जर्नल ‘न्यूक्लीयस’ की संस्थापक संपादक थीं। उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार भी मिला था। सन 2008 में उनका निधन हो गया। उनके नाम पर इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (आईसीएआर) के किसी संस्थान में चेयर स्थापित होगी।

जानकी अम्मल एक पथ-प्रदर्शक बॉटनिस्ट थीं। उन्हें गन्ने की एक विशेष रूप से मीठी प्रजाति के विकास के लिए याद किया जाता है। जिस चीनी का इस्तेमाल हम रोजमर्रा में करते हैं उसे मीठा करने के पीछे जानकी अम्मल का ही शोध है। उन्हें 1977 में पद्मश्री पुरस्कार दिया गया था। मैगनोलिया नाम के पौधे की एक प्रजाति- मैगनोलिया कोबस जानकी अम्मल का नाम उनके नाम पर रखा गया है। 1984 में 87 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। उनके नाम पर भी या तो आईसीएआर के किसी संस्थान में या नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लेन जीनोम रिसर्च में चेयर स्थापित होगी।

डॉक्टर दर्शन रंगनाथन एक जानी मानी आर्गेनिक केमिस्ट थीं। उनका जन्म 1941 में हुआ था और उन्हें प्राकृतिक बायोकैमिकल प्रक्रियाओं को प्रयोगशाला में करके दिखाने के लिए याद किया जाता है। वो अलग- अलग प्रोटीन को डिजाइन करने की विशेषज्ञ थीं और उन्होंने कई किताबें भी लिखी थीं। उनका निधन 2001 में हुआ और उनके नाम पर चेयर या तो नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी में या नेशनल केमिकल लेबोरेटरी में स्थापना की जाएगी।

1917 में जन्मी डॉक्टर आशिमा चटर्जी को एक उत्कृष्ट रसायनशास्त्री के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने आर्गेनिक केमिस्ट्री और फाइटोमेडिसिन के क्षेत्र में उपलब्धि हासिल की। मिर्गी के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली दवाई आयुष-56 और कई मलेरिया-विरोधी दवाएं जिन्हें आज कई कंपनियां बेचती हैं उन्हीं के सफल प्रयासों का नतीजा है। उनका निधन 2006 में हुआ। उनके नाम पर चेयर या तो मणिपुर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ बायोरिसोर्सेज एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट या इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज में स्थापित होगी।

1861 में जन्मी डॉ। कादम्बिनी गांगुली भारत में बतौर चिकित्सक काम करने के योग्य बनने वालीं पहली दो महिलाओं में से थीं। उनके अलावा ये गौरव आनंदी गोपाल जोशी को प्राप्त हुआ था। वो एक स्वतंत्रता सेनानी भी थीं। 1923 में उनका निधन हो गया। उनके नाम पर चेयर या तो नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी में या इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के किसी एक संस्थान में होगी।

डॉक्टर इरावती कर्वे को भारत में समाजशास्त्र के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए याद किया जाता है, वो भी ऐसे समय में जब भारत में समाजशास्त्र की समझ अपने शुरुआती दौर में ही थी। भारत में रक्त-संबंधों की व्यवस्था पर उनके अध्ययन को क्रांतिकारी माना जाता है। उनका निधन 1970 में हुआ, और उनके नाम पर चेयर की इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च या टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में स्थापना की जाएगी।

पथ-प्रदर्शक मौसम वैज्ञानिक डॉक्टर अन्ना मणि ने अपनी डॉक्टरल थीसिस के लिए नोबेल विजेता सर सी वी रमन के साथ काम किया था। मौसम विज्ञान के यंत्र खुद बनाने की आज भारत की जो क्षमता है उसके पीछे उन्हीं के द्वारा विकसित किया गया कार्यक्रम है। उन्होंने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग में 1948 में काम करना शुरू किया था और वो विभाग की डिप्टी डायरेक्टर जनरल होकर रिटायर हुईं। उनके नाम पर चेयर की स्थापना या तो इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मिटिओरोलॉजी या इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट या देहरादून-स्थित फारेस्ट इंस्टीट्यूट में की जाएगी।

1922 में जन्मी डॉक्टर राजेश्वरी चटर्जी कर्नाटक राज्य की पहली महिला इंजीनियर थीं और उन्होंने महिलाओं को इंजीनियर बनने के लिए प्रेरित किया। उन्हें देश में माइक्रोवेव और ऐन्टेना इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए याद किया जाता है। उनका निधन 2010 में हुआ और अब उनके नाम पर या तो बेंगलुरु-स्थिर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज या आईआईएसईआर के किसी संस्थान में चेयर की स्थापना की जाएगी।

डॉक्टर रमन परिमला एक जानी-मानी गणितज्ञ हैं जिन्हें अलजेब्रा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाना जाता है। माना जाता है कि उन्होंने इस क्षेत्र में ऐसी उपलब्धियां हासिल की हैं जिनसे विशेषज्ञ भी आश्चर्यचकित हो गए थे। उनके नाम पर चेयर या तो किसी आईआईटी में, या इंस्टीट्यूट ऑफ मैथेमैटिकल साइंसेज में या यूएसईआर के किसी संस्थान में या इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज में स्थापित होगी।

बिभा चौधुरी एक भौतिकशास्त्री थीं जो भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक होमी भाभा द्वारा टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के लिए चुनी हुई पहली महिला शोधकर्ता थीं। उन्होंने 1940 के दशक में एक सब-एटॉमिक पार्टिकल की खोज की थी और बाद में एक सुदूर खगोलीय पिंड का नाम उनके नाम पर रखा गया। 1991 में 78 साल के उम्र में उनका निधन हो गया। उनके नाम पर या तो सीएसआईआर में या टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में चेयर स्थापित होगी।

1917 में जन्मी कमल रणदीव एक बायोमेडिकल रिसर्चर थीं जिन्हें कैंसर पर उनके शोध के लिए याद किया जाता है। उन्होंने टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल की लंबे समय तक सेवा की और वो भारतीय महिला वैज्ञानिक संगठन के संस्थापक सदस्यों में से थीं। सन 2001 में उनका निधन हो गया। उनके नाम पर या तो राजीव गांधी सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी या नेशनल सेंटर फॉर सेल साइंस में चेयर स्थापित की जाएगी।

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