Sat. May 18th, 2024

जब मंदिर-मस्जिद मार्ग ने झुलसती दिल्ली में बनाये रखा भाईचारा

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  • 23 फरवरी को जैसे ही उत्तर पूर्वी दिल्ली के मौजपुर में हिंसा भड़की वैसे ही उससे थोड़ी दूर स्थित नूर-ए-इलाही इलाके के लोग सावधान हो गए। स्थानीय रहवासी मंदिर मस्जिद मार्ग पर तैनात हो गए ताकि दंगाइयों की भीड़ भीतर न प्रवेश कर सके। मंदिर की हिफाजत में मुसलमान खड़े हो गए तो मस्जिद की सुरक्षा में हिंदू लग गए। हिंसा में अब तक मरने वालो की तादात 42 हो चुकी है।

नई दिल्ली। उत्तर पूर्वी दिल्ली में जब दंगों की आग में झुलस रही थी, इंसानियत तार-तार हो रही थी, उस वक्त कुछ इलाके ऐसे भी थे जहां लोगों ने गंगा-जमुनी तहजीब को जिंदा रखा। कहीं हिंदू मुस्लिम परिवारों के ढाल बन गए तो कहीं मुसलमान मंदिर के रखवाले बन गए। नूर-ए-इलाही ऐसे ही इलाकों में से एक था। यहां के मंदिर मस्जिद मार्ग नाम से जाने वाली सड़क ने अपने नाम को चरितार्थ किया, जहां स्थानीय हिंदू और मुस्लिम एकजुट हो दंगे की आंच को अपनी बस्ती तक नहीं आने दिया।

नूर-ए-इलाही उसी मौजपुर के पास है, जहां 23 फरवरी को सबसे पहले हिंसा भड़की। उस वक्त नूर-ए-इलाही के वाशिंदे तुरंत मंदिर मस्जिद मार्ग की पहरेदारी के लिए खड़े हो गए ताकि दंगाई उनकी बस्ती में न घुस पाएं। नाम से ही जाहिर है कि इस सड़क पर कुछ ही मीटर की दूरी पर मंदिर और मस्जिद दोनों हैं। जैसे ही मौजपुर में हिंसा भड़की, यहां के हिंदू मस्जिद की रखवाली में खड़े हो गए और मुस्लिम मंदिर की हिफाजत में डट गए।

मंदिर मस्जिद मार्ग में अजीजिया मस्जिद और हनुमान मंदिर आस-पास हैं। नूर-ए-इलाही की आबादी मिश्रित है और यह सांप्रदायिक सद्भाव के लिए जाना जाता है। 23 फरवरी को मौजपुर में सीएए समर्थकों और विरोधियों में पथराव शुरू हो गया। तब कुछ युवा तुरंत भागकर अपने कॉलोनी पहुंचे और पड़ोस में हिंसक हो रही भीड़ के बारे में लोगों को अलर्ट किया। वक्त बिल्कुल नहीं था। किसी भी वक्त भीड़ दंगाइयों की शक्ल में आ सकती थी, जो कॉलोनी की लगभग दहलीज पर खड़ी थी। तुरंत ही दोनों समुदायों के कुछ बड़े बुजुर्गों ने इमर्जेंसी मीटिंग की और तय किया कि किसी भी कीमत पर अपनी बस्ती के दामन पर दंगे का कलंक नहीं लगने देंगे।

एक ऐसी सड़क जहां मंदिर और मस्जिद एक दूसरे से कुछ ही दूरी पर हों, वह फिजा में जहर घोलने की नीयत रखने वालों के लिए स्वाभाविक टारगेट होती। इलाके के दोनों समुदायों के लोग मंदिर मस्जिद मार्ग पर डट गए ताकि दंगाई उनकी कॉलोनी में न घुस सके। मस्जिद के लाउडस्पीकर से लगातार अपील होती रही कि ऐसा कुछ भी न हो जिससे कॉलोनी का दामन दागदार हो। आस-पास के इलाकों में नूर-ए-इलाही अपने आपसी भाईचारे के लिए जानी जाती है। यही वजह है कि मौजपुर हिंसा में जख्मी हुए कई लोग इलाज के लिए नूर-ए-इलाही गए क्योंकि उन्हें पूरा भरोसा था कि वहां उन्हें कोई खतरा नहीं होगा। स्थानीय लोगों ने न सिर्फ घायलों के इलाज में मदद की बल्कि उन्हें सुरक्षित उनके-उनके घरों तक पहुंचाया।

 

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