30 जनवरी की वो मनहूस शाम: तीन गोलियां और हे राम
1 min read- 30 जनवरी 1948 एक बहुत ही मनहूस दिन नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे और विष्णु करकरे दिल्ली रेलवे स्टेशन के रेस्तराँ से नाश्ता करके बिड़ला मंदिर के लिए निकल गए। गोडसे ने बिड़ला मंदिर के पीछे के जंगल में तीन या चार राउंड फ़ायर करके पिस्टल को परखा। दिन के 11.30 बजे गोडसे पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन निकल गए और करकरे मद्रास होटल। दोपहर बाद दो बजे करकरे पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँचे। वहाँ गोडसे और आप्टे से मिले।
शाम के 4.30 बजे रेलवे स्टेशन से तांगे से तीनों बिड़ला मंदिर के लिए निकल गए। गोडसे ने बिड़ला मंदिर के पीछे लगी शिवाजी की मूर्ति के दर्शन किए। आप्टे और करकरे वहां से क़रीब चार किलोमीटर दूर बिड़ला भवन चले गए, बिड़ला भवन अलबुकर्क रोड पर था, जिसे आज तीस जनवरी मार्ग के नाम से जाना जाता है। यही वह तारीख है जब विश्व में सत्य और अहिंसा के प्रेरणास्रोत महात्मा गांधी की हत्या हुई थी। आज गांधी जी की 66वीं पुण्यतिथि है
30 जनवरी 1948 को शाम के करीब 5 बजकर 17 मिनट होने को थे, गांधी जी दिल्ली के बिरला हाउस में एक प्रार्थना सभा में हिस्सा लेने जा रहे थे। उस दिन प्रार्थना सभा के लिए गांधी जी को पांच मिनट की देर हो गई थी। गांधी जी, आभा और मनु के कंधों पर अपना हाथ रखकर प्रार्थना सभा की ओर बढ़ रहे थे, तभी सामने से नाथूराम गोडसे आ खड़ा हुआ। गोडसे बापू के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। गांधी के साथ चल रही आभा ने गोडसे से कहा कि गांधी जी को पहले ही देर हो चुकी है, इसी दौरान गोडसे ने मनु को धक्का दिया और गांधी जी पर एक के बाद एक करके तीन गोलियां दाग दीं। जब तक किसी को कुछ समझ आता 78 साल के महात्मा गांधी की हत्या हो चुकी थी। महात्मा गांधी के आखिरी शब्द “हे राम” थे।
बापू की मृत्यु की खबर देशभर में जंगल की आग की तरह फैल गई। अहिंसा के सबसे बड़े नायक का अस्तित्व हिंसा के जरिए मिटा दिया गया। महात्मा गांधी की हत्या के दोषी नाथूराम गोडसे और साजिश रचने वाले नारायण आप्टे को फांसी दे दी गई। नाथूराम गोडसे के साथ साजिश में शामिल विष्णु कड़कड़े और गोपाल गोडसे जैसे लोगों को फांसी की सजा नहीं दी गई। बड़ी से बड़ी लड़ाई को सत्य और अहिंसा के रास्ते जीतने का बड़ा सीधा सा मंत्र बताने वाले मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्तूबर 1869 को हुआ था।