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भारत में गर्भपात की समयसीमा 24 हफ्ते करने की अनुमति

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  • भारत सरकार की केंद्रीय कैबिनेट ने चिकित्सा गर्भपात अधिनियम, 1971 में संशोधन करने को मंजूरी प्रदान कर दी है। मंजूरी के बाद गर्भपात की समय सीमा 20 से बढाकर 24 हफ्ते तक होने से रेप पीड़ितों की काफी मदद होगी।नई दिल्ली। भारत में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब बच्चियों को पांच महीने तक पता नहीं चला कि वे गर्भवती हैं और उन्हें गर्भपात कराने के लिए हाईकोर्ट का सहारा लेना पड़ा। पिछले साल ऐसी ही एक घटना मध्य प्रदेश में हुई थी, जब 11 साल की बच्ची को गर्भपात कराने की इजाजत के लिए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जाना पड़ा था, बच्ची की याचिका पर हाईकोर्ट ने गर्भपात का आदेश देते हुए कहा था गर्भपात की प्रक्रिया के दौरान पूरी सावधानी बरती जाए। इस मामले में पीड़ित बच्ची की मां गर्भपात कराना चाहती थी और उसने याचिका दी थी। अदालत ने गर्भपात की इजाजत दी थी। इसी तरह से पिछले साल सूरत की एक बच्ची को गुजरात हाईकोर्ट ने 24 हफ्ते का गर्भपात कराने की मंजूरी दी थी। जज ने डॉक्टरों के पैनल की रिपोर्ट के आधार पर यह मंजूरी दी थी। रिपोर्ट में गर्भ से नाबालिग की जान को खतरा बताया गया था।

30 जनवरी बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट ने चिकित्सा गर्भपात अधिनियम, 1971 में संशोधन करने के लिए चिकित्साा गर्भपात (एमटीपी) संशोधन विधेयक, 2020 को मंजूरी दे दी। चिकित्सा जगत से जुड़े जानकार इस कदम का स्वागत कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह ऐसे नाबालिग यौन पीड़ितों के लिए काफी मददगार होगा जिनका रेप के कारण गर्भ ठहर जाता है और उन्हें या परिवार को बहुत देर से इसका पता चलता है। ऐसे मामलों में उन्हें गर्भपात कराने के लिए कोर्ट में अर्जी लगानी पड़ती है जिसके लिए अब तक 20 महीने की समयसीमा हुआ करती थी। संशोधित कानून के अनुसार, गर्भावस्था के 20 हफ्ते तक गर्भपात कराने के लिए एक चिकित्सक की राय लेने की जरूरत और गर्भावस्था के 20 से 24 हफ्ते तक गर्भपात कराने के लिए दो चिकित्सकों की राय लेना जरूरी होगा।

चिकित्सा शब्दावली के मुताबिक गर्भावस्था की समाप्ति को गर्भपात कहा जाता है। देश में करीब आधी सदी पुराने गर्भपात कानून में सुधार के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है जिसके मुताबिक विशेष परिस्थितियों में महिलाओं के गर्भपात के लिए गर्भावस्था की सीमा 20 से बढ़ाकर 24 सप्ताह किया जाएगा। इस बदलाव को एमटीपी नियमों में संशोधन के जरिए परिभाषित किया जाएगा और इनमें दुष्कर्म पीड़ित, सगे-संबंधियों के साथ यौन संपर्क की पीड़ित और अन्य असुरक्षित महिलाएं जैसे विकलांग और नाबालिग महिलाएं भी शामिल होंगी।
साथ ही जिस महिला का गर्भपात कराया जाना है उनका नाम और अन्य जानकारियां उस वक्त कानून के तहत तय किसी खास व्यक्ति के अलावा किसी और के सामने नहीं लाया जाएगा।

सरकार का कहना है कि यह महिलाओं की सुरक्षा और सेहत की दिशा में उठाया गया ठोस कदम है और इससे बहुत महिलाओं को लाभ मिलेगा। हाल के दिनों में अदालतों में कई याचिकाएं दी गईं जिनमें भ्रूण-संबंधी विषमताओं या महिलाओं के साथ यौन हिंसा की वजह से गर्भधारण के आधार पर मौजूदा स्वीकृत सीमा से अधिक गर्भावस्था की अवधि पर गर्भपात कराने की इजाजत मांगी गई।

भारत में कई संगठन लंबे अर्से से गर्भपात की समयसीमा बढ़ाने की मांग करते आए हैं, उनकी दलील है कि 1971 का कानून बहुत पुराना है और चिकित्सा प्रगति को नजरअंदाज करता है। डॉ हलदर कहते हैं, “गर्भपात की समयसीमा 24 हफ्ते तक करने से नाबालिग पीड़ितों की सबसे ज्यादा मदद होगी, उन्हें नए कानून के तहत गर्भपात का अधिकार मिल जाएगा। कई मामलों में यह कदम पीड़ितों के लिए सहायता देने वाला होगा।”

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात सेवाएं देने और चिकित्सा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के विकास को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग हितधारकों और मंत्रालयों के साथ विचार के बाद गर्भपात कानून में संशोधन का प्रस्ताव किया है। ग्रीस, फिनलैंड और ताइवान में गर्भपात की समयसीमा 24 हफ्ते तय है। जबकि अमेरिका के कई राज्यों में गर्भपात पर प्रतिबंध है। हालांकि विश्व भर में गर्भपात को लेकर अब पहले से उदार प्रवृत्ति अपनाई जा रही है।

नाबालिग पीड़ितों की होगी मदद
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ सत्यकी हलदर कहते हैं, “भ्रूण संबंधी खास विषमताओं की पहचान 20 हफ्ते के पहले मुमकिन नहीं है और 22 हफ्ते या 24 हफ्ते में भ्रूण का आकार बढ़ जाता है। सरकार ने जो गर्भपात कानून में संशोधन करने का फैसला किया है वह जाहिर तौर यौन हिंसा की पीड़ितों के लिए मददगार साबित होगा।”

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