ट्रंप की मध्यपूर्व योजना सफलता का दावा और हकीकत
1 min read- अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने उनकी मध्यपूर्व योजना की घोषणा कर दी है, लेकिन कई विशेषज्ञ मानते हैं कि इस योजना में इस्राएल को जरुरत से ज्यादा खुला प्रश्रय दिया गया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने बड़े गर्व से कहा है कि उनकी मध्यपूर्व योजना को समर्थन मिलेगा। लेकिन अधिकतर विशेषज्ञ मानते हैं कि इस योजना में इस्राएल के खुले प्रश्रय और फलस्तीनी राज्य के बनने के लिए कठिन शर्तों की वजह से यह असफल हो जाएगी। वाशिंगटन स्थित काउन्सिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स में वरिष्ठ फेलो स्टीवन कुक का कहना है, “ये एक कभी ना शुरू होने वाला कदम है। फलस्तीनियों ने इसे तुरंत ही अस्वीकार कर दिया। उन इस्राएल निवासियों ने भी इसे अस्वीकार कर दिया जो किसी भी तरह के फलस्तीनी आधिपत्य के खिलाफ हैं।”
कुक ने ये भी कहा कि फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास का योजना पर बातचीत करने का कोई इरादा नहीं है और ऐसा लगा रहा है कि इस्राएली प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू भी अब्बास से इस योजना को अस्वीकार कर देने की उम्मीद लगा रहे हैं। ट्रंप प्रशासन ने इस्राएल के साथ इस योजना पर समन्वय किया था। इसके तहत नेतन्याहू को वेस्ट बैंक के अधिकतर इलाके को हड़प लेने के लिए हरी झंडी मिली है। नेतन्याहू खुद पहले ही कह चुके हैं कि इस रास्ते पर उनका मंत्रिमंडल जल्द ही आगे बढ़ेगा।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के मध्यपूर्व मामलों के पूर्व विशेषज्ञ मिशेल डून का कहना है, “इस योजना का उद्देश्य है प्रधानमंत्री नेतन्याहू की उनके मौजूदा राजनीतिक और कानूनी चुनौतियों से लड़ने में मदद करना और राष्ट्रपति ट्रंप के पुनःनिर्वाचित होने के अभियान में इस्राएल की तरफ झुकाव रखने वाले मतदाताओं के बीच उनके लिए समर्थन पैदा करना।” अब कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में कार्यरत डून ने यह भी कहा कि “ऐसा कोई भी संकेत नहीं है जो ये इशारा करता हो कि इस योजना की वजह से बातचीत शुरू होगी।”
ट्रंप प्रशासन ने 80 पन्नों की इस योजना को तैयार करने में तीन साल लगाए। फलस्तीनी नेतृत्व ने ट्रंप की कोशिशों का बहिष्कार कर दिया है। वे विवादित येरुशलम को इस्राएल की राजधानी मानने जैसे बड़े कदमों की वजह से ट्रंप को पक्षपातपूर्ण मानते हैं। कुछ अपेक्षाओं के विपरीत, ट्रंप की योजना में एक फलस्तीनी राज्य और येरुशलम के इर्द गिर्द उसकी राजधानी का जिक्र जरूर है। लेकिन ये राजधानी येरुशलम के नजदीकी फलस्तीनी गांव अबू दिस जैसे पूर्वी इलाकों में होगी, और पूरे येरुशलम पर इस्राएल का प्रभुत्व होगा।
ट्रंप के दामाद और सलाहकार जैरेड कुशनर की अगुवाई में बनी इस योजना के तहत फलस्तीनी राज्य के लिए माने गए इलाकों में इस्राएली बस्तियों को चार साल तक बने रहने की इजाजत भी दी गई है। इसके अलावा पश्चिमी बैंक और गाजा को एक गलियारे से जोड़ने का प्रस्ताव है जिसमे तीव्रचालित यातायात होगा। इसके अलावा योजना में और भी कई आर्थिक विकास से जुड़े प्रस्ताव हैं। कुक कहते हैं, “सामरिक दृष्टि से योजना में कुछ अच्छे सुझाव हैं, लेकिन फलस्तीनियों के लिए अलग राज्य के वायदे के बिना ये अर्थहीन है।”
वॉशिंगटन इंस्टीट्यूट फॉर नियर ईस्ट पॉलिसी के रॉबर्ट सैटलॉफ ने इसे एक लंबे संघर्ष में यथार्थवाद की एक खुराक बताते हुए इसका स्वागत किया। उन्होंने कहा, “जॉर्डन नदी को इस्राएल की सुरक्षा सीमा बनाना उचित है। वेस्ट बैंक में बसने वाले लाखों इस्राएलियों को वहां से पुनर्स्थापित होने के लिए मजबूर ना किया जाना उचित है।” उन्होंने यह भी कहा, “इन लोगों ने इन सभी सिद्धांतों को लेकर इतना खींच दिया है कि ये अब पहचाने नहीं जा रहे हैं।
जॉर्डन घाटी पर इस्राएली सुरक्षा के नियंत्रण को संपूर्ण आधिपत्य बना दिया गया है। लाखों निवासियों को ना हटाने को एक भी निवासी को ना हटाना बना दिया गया है।” डून ने कहा कि योजना की मूल सुर्खी ये है कि यह इस्राएल की पूर्वी सीमा को जॉर्डन नदी के किनारे-किनारे तक ले जाती है। उन्होंने कहा, “बाकी सब तफ्सील है। योजना जो भी फलस्तीनियों को देती है वो तत्कालिक, शर्तबंद और दीर्घकालिक है। दूसरे शब्दों में, ये सब शायद ना ही हो पाए।”
उन्होंने ये भी कहा कि इस्राएल इसे तब तक लागू नहीं करेगा जब तक वो गाजा के शासकों का अनुमोदन नहीं कर देता है। यूरेशिया ग्रुप रिस्क कंसल्टेंसी में विश्लेषक हेनरी रोम ने ट्वीट किया, “जब तक हमास को या तो हटाया नहीं जाता या निशस्त्र नहीं किया जाता या वो हिंसा नहीं त्याग देता या वो इस्राएल को यहूदी लोगों का राज्य नहीं मान लेता, फलस्तीनियों को इस योजना से शून्य मिलेगा। हमास के पास निषेधाधिकार है।”
कुछ पर्यवेक्षकों के लिए ट्रंप योजना का मूल उद्देश्य है दीर्घ काल में समाधान के मापदंडों को इस्राएल के लिए और अनुकूल बनाना। शांति योजना के भेस में पश्चिमी बैंक का इस्राएल द्वारा कब्जे में ले लेना फलस्तीनियों के लिए एक निर्विवादित तथ्य बन जाएगा। डून का कहना है, “फलस्तीनी लोग या उनका नेतृत्व कितना भी कमजोर क्यों न हो, उनके पास ना कहने की क्षमता हमेशा रहेगी और इस बार वो वही करेंगे। असली सवाल ये है कि ये फलस्तीनी आंदोलन को किस तरफ ले जाएगा।
ये इस योजना का उद्देश्य हो या ना हो, लेकिन ऐसा लगता है कि इससे एक स्वतंत्र राज्य के लिए संघर्ष को दक्षिण अफ्रीका की तर्ज पर अधिकारों के लिए संघर्ष में बदलने की प्रक्रिया और तेज हो जाएगी।”
फलस्तीनी अस्वीकृति के बावजूद, ट्रंप योजना का अरब देशों में अमेरिका के कई मित्र देशों ने स्वागत किया। ये सभी देश ट्रंप और नेतन्याहू के साथ मिल कर ईरान के खिलाफ खड़े हैं। बहरीन, ओमान और यूएई – इस्राएल को ना मानने वाले तीनों देशों के राजदूत ट्रंप योजना की घोषणा के दौरान वहां मौजूद थे। मिस्र, जो इस्राएल के साथ शांति कायम करने वाला पहला अरब राज्य था, उसने फलस्तीनियों से कहा कि वे “प्रस्ताव का पूरी तरह से और सावधानीपूर्वक निरीक्षण करें।”
कॉउन्सिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के अध्यक्ष रिचर्ड हास ने भी ट्वीट किया, “फलस्तीनी योजना को तुरंत अस्वीकार कर देने के लिए ललचाएंगे लेकिन उन्हें इस प्रलोभन को सह कर सीधी बातचीत के लिए राजी हो जाना चाहिए, जहां वे जो चाहें उसकी वकालत कर सकेंगे। पूरी तरह से अस्वीकार कर देने से दो राज्यों वाले समाधान के लिए जो भी उम्मीदें हैं वो कमजोर हो जाएंगी और कब्जे का रास्ता आसान हो जाएगा।”