बुनियाद हिली अब आगे क्या…
1 min read- झूठ के हाथ पैर नहीं होते जबकि सच का स्वरुप अस्तित्व में दिखता है। जो दिख रहा है वह बताये गए से उलट है और डरावना है। आज भारत आर्थिक मोर्चे पर बुनियादी संकट झेलने के लिए मजबूर है। मजबूत अर्थव्यवस्था के दावे के साथ उसे 5 ट्रिलियन डालर तक के शिखर पर पहुंचाने के लक्ष्य की बानगी एनएसएसओ के सरकारी आंकड़ों में चीख चीख कर कह रही है कि बुनियाद हिल चुकी है।
एनएसएसओ के आंकड़ों में भारत की विकास दर लगभग साढ़े चार दशकों में सबसे निचले स्तर पर है। यह आकलन सबसे व्यावहारिक पैमाने पर महंगाई सहित विकास दर पर आधारित है। इतना ही नहीं स्थायी मूल्यों पर भी विकास दर 11 साल के निचले स्तर पर है। देश की आर्थिक सेहत के बुनियादी पैमाने बदरंग तस्वीर पेश करते है। भारत की जीडीपी विकास दर ने दुनिया भर को आशंकित कर दिया है। महंगाई, रोजगार दर, निवेश-बचत, मांग-खपत, विदेशी मुद्रा भंडार, ब्याज दरों जैसे मोर्चो पर बड़ी चोट हुई है।
चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में निवेश की सालाना वृद्धि दर 15 साल के न्यूनतम स्तर 0.97 फीसद पर आ गई, जो 2004-08 के बीच में 18 फीसद और 2008-18 के बीच 5.5 फीसद की दर से बढ़ रहा था। पूंजी निवेश 1960 के बाद से लगातार बढ़ता रहा है। 2008 में 38 फीसदी और 2018 में 33 फीसदी के बाद अब यह गिरकर 29 फीसदी पर है।
मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया के लिए पूंजी और भारी विदेशी निवेश काल के गाल में समा गया है। निवेश के आंकडे़ बता रहे हैं कि अर्थव्यवस्था की बुनियादी कमजोरी के कारण उद्योग जोखिम लेने को तैयार नहीं हैं। हाल ही में बीते साल 2019 में बेरोजगारी दर रिकॉर्ड स्तर पर दर्ज की गई जिसे निवेश में गिरावट का सबसे बड़ा प्रमाण माना जा सकता है।
इस साल उपभोक्ताओं का खपत खर्च बढ़ने की गति बीते साल 8 फीसदी से गिरकर 5.8 फीसदी पर आ गई। जीएसटी के पहले के पिछले दो दशकों में उपभोग और आय पर टैक्स बढ़ने के बावजूद खपत की दर कमाई बढ़ने से ज्यादा तेज रही है यही वजह रही कि जीडीपी ने लम्बी छलांग लगाई थी। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर, किसानों को नकद भुगतान, कर्मचारियों के लिए वेतन आयोग, जीएसटी दरों में कमी और महंगाई दर में कमी के बाद भी खपत इस कदर चकनाचूर हुई कि वह जीडीपी के 57.4 फीसद हिस्से को ले डूबी।
बचत के मोर्चे पर भी संकट गहरा गया है। देश में बचत कम होने की दर आय में गिरावट से भी ज्यादा तेज है। आय और बचत में गिरावट का यह दौर वर्ष 2012 में एक साथ शुरू हुआ था लेकिन इसके बाद में बचत ज्यादा तेजी से गिरी। जीडीपी के अनुपात में बचत 17.9 फीसद रह गई है। जो 2006 से 2010 के बीच 23.6 फीसद थी।
एनएसएसओ के आंकड़े भारत में गरीबी बढ़ने के प्रमाण प्रस्तुत करते है। क्योंकि प्रति व्यक्ति की आय बढ़ने की दर नौ साल के सबसे निचले स्तर पर आ गई है। संयुक्त राष्ट्र के विकास लक्ष्यों पर नीति आयोग की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 22 राज्यों में 2018 के बाद गरीबी, 24 राज्यों में भुखमरी और 25 राज्यों में आय में असमानता बढ़ी है।
आर्थिक मोर्चे पर भारत के हालात निकट भविष्य पटरी पर लौट आएंगे इसके संकेत दिखते नहीं है। निवेश की उम्मीद बेहद कम है। मांग गिरने के कारण कई उद्योग कीमतें बढ़ाने की ताकत भी खो चुके हैं। उन्हें नीतियों में स्थिरता और अच्छे रिटर्न की उम्मीद चाहिए। अगर आने वाले दिनों में महंगाई बढ़ती है तो इससे शुरुआती महीनों में खपत और घटेगी।
समस्या यह है क़ि आय और बचत में एक साथ गिरावट होने के कारण जटिलता बने रहने क़ि आशंका है, जिसे पटरी में आने के लिए कम से कम तीन-चार साल का वक्त चाहिए। जब तक आय-खपत में बढ़त का क्रम शुरू नहीं होता तब तक बचत बढने की उम्मीदे करना बेमानी है।
सरकारिया प्रयास और उसके प्रस्थान बिन्दु सदिंग्ध है उसकी पिछले छह माह में मंदी से निबटने की सभी कोशिशें औंधे मुंह गिरी हैं। 5 ट्रिलियन तो दूर की कौड़ी है, अब तो बुनियाद को बिखरने से बचाने की चुनौती सामने है। कम से कम अब तो यह उम्मीद की जनि चाहिए कि 2020-21 का बजट झूठ की छाया से दूर वास्तविक पैमानों पर आधारित होगा।
ब्रजेन्द्र द्विवेदी
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