अर्थव्यवस्था में 1.5 से 2 लाख करोड़ रुपये पम्प करने की जरूरत
1 min readनई दिल्ली| केंद्रीय बजट पेश किए जाने के कुछ हफ्ते पहले फेडरेशन आफ इंडियन चैंबर आफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (फिक्की) की अध्यक्ष संगीता रेड्डी ने शुभायन चक्रवर्ती से बातचीत में कहा कि इस समय सरकार की ओर से खर्च बढ़ाना वक्त की जरूरत है, भले ही राजकोषीय घाटे का लक्ष्य न हासिल हो सके।
खपत में गिरावट को उबारने के सुझाव
हमारा विदेशी मुद्रा भंडार इस समय सबसे ज्यादा है। हमारा राजकोषीय घाटा नियंत्रण में है। तमाम आंकड़े मंदी दिखा रहे हैं, जिसके लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। इसमें पहला यह हो सकता है कि अर्थव्यवस्था में कम से कम 1.5 से 2 लाख करोड़ रुपये डाला जाए, जिससे खपत को बढ़ावा मिले। इससे उत्पादन चक्र में निवेश में तेजी आएगी।
बढ़ता राजकोषीय घाटा
रेटिंग को बरकरार रखा जा सकता है अगर पूंजी लगाया जाए। हम विनिवेश योजना लागू कर यह धन वापस पाया जा सकता है। अगर 3 से 5 लाख करोड़ रुपये विनिवेश के माध्यम से जुटाने की समयबद्ध योजना बनाई जाए तो यह व्यय जरूरतों को पूरा करने के हिसाब से पर्याप्त होगा। ऐसा होने पर रेटिंग पर कोई असर नहीं होगा।
विनिवेश प्रक्रिया
नहीं। मेरा मानना है कि इसके लिए और ज्यादा केंद्रित तरीका अपनाया जाना चाहिए। इसके लिए उच्च स्तरीय मंत्रालय या प्रभारी मंत्री की जरूरत है। इस क्षेत्र में परिणाम की जरूरत है। मुझे नहीं लगता कि सूची में शामिल किसी कंपनी को बेचा नहीं जा सकता। लेकि सरकार यह देख सकती है कि बिक्री की दर क्या है या बहुलांश हिस्सेदारी बेचते समय सरकार एक अंश बरकरार रख सकती है।
विनिर्माण आउटपुट पिछले कुछ महीनों में कई बार कम हुआ है।
गिरावट रोकने की चुनौती
ज्यादा क्लस्टर बनाए जाने की जरूरत है, क्योंकि अभी कच्चे माल का उत्पादन, विनिर्माण व पोर्ट अलग अलग जगहों पर हैं। बांग्लादेश जैसे देशों ने यह खाईं कम की है और परिवहन लॉजिस्टिक्स लागत कम किया है। साथ ही हमें इसे लेकर भी सचेत होने की जररूरत है कि हमारे तमाम उद्योगों को प्रतिस्पर्धा का सीमित लाभ है चाहे वह जमीन का मसला हो, श्रम की लागत हो या लॉजिस्टिक्स का मसला हो। हमारे पास सिर्फ भारत के उद्यमियों और भारत के बाजार के आकार की ताकत है। अगर रोबोटिक्स, 3डी प्रिंटिंग और कृत्रिम मेधा पर जोर दिया जाए तो यह भविष्य के लिए बहुत अहम होगा। पर्यावरण पर ध्यान केंद्रित करने के साथ विश्व कचरा प्रबंधन, संरक्षण, जल प्रबंधन और हरित ऊर्जा पर ध्यान दे रहा है। ऐसे में उद्योग और साथ ही सरकार की ओर से ऐसे क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। ग्रामीण मांग में कमी कृषि क्षेत्र में दबाव की वजह से आई है।
संभावित कदम
समग्र कृषि नीति की जरूरत है, जिसमें सिंचाई, फसलों के प्रकार में बदलाव और बगैर इस्तेमाल वाली जमी का इस्तेमाल हो सके। पशुधन और डेयरी दो प्रमुख क्षेत्र हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है। यह क्षेत्र अर्थव्यवस्था की वृद्धि को गति दे सकते हैं। हमने कृषि क्षेत्र में 2 लाख करोड़ रुपये लगाने की अपील की है। इसमें सार्वजनिक व निजी क्षेत्र दोनोंं को समाहित किया जा सकता है।
कृषि में नीतिगत बदलाव की जरूरत
लोगों का मानना है कि समय बीतने के साथ जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी कम होनी चाहिए। कृषि क्षेत्र में लगे लोगोंं की संख्या भी मौजूदा 53 प्रतिशत से कम होनी चाहिए। लेकिन भारत में कृषि क्षेत्र में काम करने वाले 25-30 प्रतिशत हो सकते हैं, अगर हम सही दिशा में कदम उठाएं। खाद्य प्रसंस्करण, गोदामों की स्थिति में सुधार और निर्यात पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है।