Thu. Apr 25th, 2024

रसोई गैस सिलेंडर 11.5 रुपये, विमान ईंधन 56.6 प्रतिशत महंगा, पेट्रोल-डीजल स्थिर

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  • नई दिल्ली। घरेलू रसोई गैस के बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर का दाम सोमवार से साढ़े ग्यारह रुपये बढ़ गया। विमान ईंधन भी 56.6 प्रतिशत महंगा हो गया। हालांकि पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार 78वें दिन भी स्थिर रहे।

सार्वजनिक क्षेत्र की ईंधन कंपनियों इस संबंध में अधिसूचना जारी की। वैश्विक संकेतों के चलते दिल्ली में विमान ईंधन (एटीएफ) का दाम 56.5 प्रतिशत या 12,126.75 रुपये प्रति किलोलीटर बढ़कर 33,575.37 रुपये प्रति किलोलीटर हो गया।

जबकि इससे पहले फरवरी से एटीएफ की कीमत में लगातार कटौती जारी थी। फरवरी में दिल्ली में एटीएफ की कीमत 64,323.76 रुपये प्रति किलोलीटर थी जो पिछले महीने घटकर 21,448.62 रुपये प्रति किलोलीटर तक आ गयी थी। अधिकारियों ने कहा कि एटीएफ की कीमत बढ़ाना जरूरी हो गया था, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में मानक कीमतें अपने दो दशक के निचले स्तर से बाहर आ गयी हैं।

इसी तरह बिना सब्सिडी वाले रसोई गैस के 14.2 किलोग्राम के सिलेंडर का दाम 11.50 रुपये बढ़ा कर 593 रुपये प्रति सिलंडर कर दिया गया है। बिना सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडर के दामों में लगातार तीन महीने की कटौती के बाद यह बढ़ोत्तरी की गयी है। सरकार साल भर में 12 सिलेंडर सब्सिडी पर उपलब्ध कराती है। जिन ग्राहकों ने अपनी सब्सिडी छोड़ दी है उन्हें भी बाजार कीमत पर अपना सिलेंडर खरीदना होता है।

सार्वजनिक क्षेत्र की सभी पेट्रोलियम कंपनियां जहां एक तरफ नियमित रूप से एटीएफ और रसोई गैस कीमतों में बदलाव कर रहे हैं। वहीं पेट्रोल और डीजल की कीमत देश में 16 मार्च से स्थिर बनी हुई है, अन्यथा इनके दामों में प्रतिदिन बदलाव का नियम है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की गिरती कीमतों का लाभ उठाने के लिए सरकार ने पेट्रोल और डीजल दोनों पर तीन-तीन रुपये उत्पाद शुल्क की बढ़ोत्तरी कर दी थी। लगभग उसी के बाद से इनकी कीमत स्थिर बनी हुई है। बाद में सरकार ने छह मईको पेट्रोल पर 10 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 13 रुपये प्रति लीटर का उत्पाद शुल्क और बढ़ा गया था।

तेल कंपनियों ने इसका बोझ ग्राहकों के सिर पर डालने के बजाय अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कम कीमतों से हो रही बचत से उठाने का निर्णय किया। इससे पहले पेट्रोल-डीजल की कीमतें मई 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान 19 दिन तक स्थिर रही थीं। उस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें लगातार बढ़ने के बावजूद कीमतें स्थिर रही थीं।

 

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