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लॉक डाउन से लैंगिक हिंसा और अनचाहे गर्भ के मामले बढ़ सकते है!

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संजीव पांडेय 

भले ही विश्वव्यापी कोविड 19 महामारी पर क़ाबू पाने में लॉक डाउन अहम मददगार साबित हुआ हो मगर एक अन्य मोर्चे पर यह दुनिया भर की सरकारों के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। बाहर न निकलने की सख्त पाबन्दी और व्यापारिक तालाबंदी की बड़ी मानवीय क़ीमत महिलाओं को चुकानी पड़ सकती है और उन्हें लैंगिक हिंसा और अनचाहे गर्भ जैसी समस्याओं से जूझना पड़ सकता है। हाल ही में एक अफ्रीकी देश की महिलाओ ने लॉक डाउन के दौरान, घर पर हो रही लैंगिक हिंसा की दुहाई दे कर कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की थी।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ( यूएनएफपीए) और साझीदार संगठनों की नई अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि स्वास्थ्य सेवाओं में आए व्यवधान के कारण आने वाले महीनों में अनचाहे गर्भधारण के 70 लाख से ज़्यादा अतिरिक्त मामले सामने आ सकते हैं और महिला ख़तना व बाल विवाह के मामलों में भी बढ़ोत्तरी दर्ज होने की आशंका है। ये आँकड़े यूएन एजेंसी ने अपने साझीदार संगठनों – एवेनीर हेल्थ, जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी और विक्टोरिया यूनिवर्सिटी के सहयोग से तैयार किए हैं।

अध्ययन के अनुमान यह भी दर्शाते हैं कि अगर महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों और कल्याण की सुरक्षा के लिए तत्काल प्रयास नहीं किए गए तो उनके लिए मुश्किल हालात पैदा हो सकते हैं। रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि निम्न और मध्य आय वाले देशों में तालाबंदी और अन्य सख़्त पाबंदियों के कारण छह महीने की अवधि में लगभग चार करोड़ 70 लाख महिलाएँ आधुनिक गर्भनिरोधक उपायों का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगी। इससे महिलाओं द्वारा अनचाहे गर्भधारण के 70 लाख और लैंगिक हिंसा के तीन करोड़ से ज़्यादा अतिरिक्त मामले सामने आ सकते हैं।

यूएन जनसंख्या कोष की कार्यकारी निदेशक डॉक्टर नतालिया केनेम कहती है ” विश्व भर में महिलाओं व लड़कियों पर जल्द ही कोविड-19  का कितना विनाशकारी असर हो सकता है।” तमाम आधारों को समावेशित करती रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि विश्वव्यापी महामारी के कारण महिला जननांग विकृति (महिला ख़तना) और बाल विवाह जैसी समस्याओं के ख़िलाफ़ प्रभावी कार्रवाई की रफ़्तार पर असर पड़ेगा। इस वजह से अगले एक दशक में महिला ख़तना के 20 लाख ज़्यादा मामलों और बाल विवाह के एक करोड़ तीस लाख से ज़्यादा अतिरिक्त मामलों देखने को मिल सकते है।

लॉक डाउन के चलते दुनिया में अनेक स्थानों पर परिवार नियोजन सेवाओं पर व्यापक असर पड़ा है। बहुत से स्थानों पर स्वास्थ्य सेवाएँ ठप हैं या फिर सीमित स्तर पर ही उपलब्ध हैं। जो देश कोविड-19 से व्यापक स्तर पर प्रभावित हैं, वहाँ स्वास्थ्यकर्मियों के पास या तो समय का अभाव है या फिर ज़रूरी निजी बचाव उपकरण नहीं है ताकि वे परामर्श प्रदान कर सकें। बहुत से स्थानों पर महिलाएँ ख़ुद स्वास्थ्य केंद्रों तक जाने से कतरा रही हैं क्योंकि उन्हें कोविड-19 से संक्रमित होने का भय है।

आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) में भी व्यवधान आने के कारण बहुत सी जगहों पर गर्भनिरोधकों की उपलब्धता पर असर पड़ा है। अगले छह महीनों में सबसे कम आय वाले देशों में इनका भंडार ख़त्म हो जाने की आशंका जताई गई है।

यूएन एजेंसी के मुताबिक हाशिए पर रह रहे और निर्बल समुदायों के लिए परिवार नियोजन संबंधी प्रयासों को मज़बूती देने के प्रयासों में देरी का अनुभव करना पड़ सकता है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने सरकारों व साझीदार संगठनों के साथ मिलकर प्रजनन उम्र की महिलाओं व लड़कियों की ज़रूरतों को पूरा करना प्राथमिकता बनाया है।

इस संबंध में एजेंसी स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत बनाने, स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा के लिए ज़रूरी सामग्री ख़रीदने व वितरित करने, यौन, प्रजनन और लैंगिक हिंसा के मामलों में सहायता के लिए सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने और जोखिम संचार व सामुदायिक संपर्क पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

यूएन एजेंसी प्रमुख का कहना है कि महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य व अधिकारों की हर हाल में रक्षा की जानी होगी। ऐसी सेवाएँ जारी रखनी होंगी, आपूर्ति का वितरण करना होगा और सबसे निर्बलों की रक्षा व उन्हें सहारा देना होगा।

कुछ रिपोर्टों के मुताबिक दुनिया भर में महिलाओं व लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा में बढ़ोत्तरी होने के संकेत मिल रहे हैं, और हॉटलाइन्स, संकट केंद्रों व न्यायिक अधिकारों के पास ऐसे मामले लगातार आ रहे हैं। इस समीक्षा में बताया गया है कि महामारी के कारण किस प्रकार लैंगिक हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी होगी। पहला, हिंसा की रोकथाम करने के लिए संचालित कार्यक्रमों व पीड़ितों के लिए उपलब्ध सेवाओं में व्यवधान पैदा हुआ है। दूसरा, तालाबंदी के कारण महिलाओं के अपने घरों तक सीमित हो जाने के कारण उन्हें दुर्यव्यहार करने वालों के साथ ही रहने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है और यह आर्थिक दबाव वाले समय में हो रहा है।

स्त्रोत : सयुक्त राष्ट्र की प्रकाशन सामग्री।

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