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मजदूरों पर महामारी और बेरोजगारी की दोहरी मार

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संजीव पांडेय

इस महामारी के बीच आयी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की ताजा रिपोर्ट, भोर पहर के किसी बुरे सपने जैसी डराती है। रिपोर्ट में आंकड़ों और आंकलन के हवाले से कहा गया हैकि वैश्विक महामारी कोविड-19 के चलते दुनियां के तकरीबन एक अरब साठ करोड़ मजदूर और उनसे जुड़े परिवार की आजीवका पर घिरा आर्थिक संकट और गहरा सकता है। बीते चार महीनों में महामारी कोविड-19 का दुनिया भर के अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में करोड़ों श्रमिकों और उद्यमों पर तबाही लाने वाला असर पड़ा है और वर्तमान में यह असर जारी भी है।

साल 2019 के नवम्बर-दिसम्बर माह के साथ चीन में शुरू हुई इस महामारी ने दुनिया के 185 देशों में तबाही ले आई। दुनिया भर में लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के चलते फिलहाल उद्योग और व्यापार ठप्प पड़े है। जिसका सीधा असर श्रमिको की आजीवका से जुड़ा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक “महामारी की वजह से कामकाजी घंटों में भारी गिरावट जारी है। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करने वाले लगभग एक अरब 60 करोड़ कामकाजी लोगों की क़रीब आधी संख्या में लोग अपनी आजीविका खोने के ख़तरे का सामना कर रहे हैं।”

‘ आईएलो माइनॉरिटी थर्ड एडिशन: कोविड 19 एंड द वर्ल्ड ऑफ वर्क” के मुताबिक वर्ष 2020 की मौजूदा (दूसरी) तिमाही में कामकाजी घंटों में गिरावट पहले के अनुमानों से भी कहीं ज़्यादा हो सकती है। ढहते रोजगार के अवसरों के बीच इस बारे में श्रम संगठन के महानिदेशक गाय राइडर ने मीडिया संवाद में कहा है कि जैसे-जैसे महामारी और रोज़गार के संकट की तस्वीर स्पष्ट हो रही है, सबसे निर्बलों को मदद करने की ज़रूरत और ज़्यादा तात्कालिक होती जा रही है।

अगर भारत के संदर्भ में हम बात करे तो लाखों श्रमिकों के पास भोजन के लिए आय, सुरक्षा और भविष्य में गुज़र-बसर करने का कोई ज़रिया नहीं है। देशभर में लाखों व्यवसाय मुश्किल से सॉंस ले पा रहे हैं। उनके पास बचत या उधार के साधन सुलभ नहीं है। कामकाजी दुनिया के यही वास्तविक चेहरे हैं। अगर सरकार समय पर इन्हें समुचित मदद नहीं करती, तो ये बर्बाद हो जाएंगे।

विश्व के परिपेक्ष्य में इस संकट से पहले वर्ष 2019 की चौथी तिमाही के स्तर की तुलना में अब 10.5 फ़ीसदी की गिरावट आने की आशंका है जो 30 करोड़ से ज़्यादा पूर्णकालिक रोज़गारों के समान है। इस अनुमान के लिए एक सप्ताह में 48 कामकाजी घंटों को पैमाना माना गया है।
इससे पहले यह अनुमान 6.7 फ़ीसदी की गिरावट का लगाया गया था जिसमें 19 करोड़ से ज़्यादा पूर्णकार्लिक कर्मचारियों के रोज़गार खो जाने के समान था। इसकी वजह तालाबंदी व अन्य सख़्त पाबंदियों का जारी रहना बताया गया है।

भौगोलिक दृष्टि से सभी बड़े क्षेत्रों में हालात ख़राब हुए हैं। अनुमानों के मुताबिक वर्ष की दूसरी तिमाही में अमेरिका क्षेत्र में कामकाजी घंटों में संकट से पहले की तुलना में 12.4 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।

योरोप और मध्य एशिया के लिए यह आँकड़ा 11.8 प्रतिशत है जबकि अन्य क्षेत्रों के लिए यह 9.5 फ़ीसदी से ज़्यादा बताया गया है।

अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर असर
वैश्विक कार्यबल  की संख्या तीन अरब 30 करोड़ बताई गई है जिनमें से दो अरब से ज़्यादा लोग अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा हैं।विश्वव्यापी महामारी के कारण एक बड़ा आर्थिक संकट खड़ा हो गया है और अनौपचारिक क्षेत्र में काम कर रहे एक अरब 60 करोड़ श्रमिकों की रोज़ी-रोटी कमाने पर असर पड़ा है। स्वास्थ्य संकट शुरू होने के बाद के पहले महीने में वैश्विक स्तर पर अनौपचारिक श्रमिकों की आय में गिरावट 60 फ़ीसदी आँकी गई है।

अफ़्रीका और अमेरिका क्षेत्र में यह गिरावट 81 फ़ीसदी, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 21.6 फ़ीसदी और योरोप व मध्य एशिया में 70 प्रतिशत होने का अनुमान है। आजीविका के वैकल्पिक साधनों के अभाव में प्रभावित श्रमिकों व उनके परिवार के लिए जीवन-यापन बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है।

हालत में बेहतरी के लिए यूएन एजेंसी ने तत्काल लक्षित व लचीले उपाय अपनाने की पुकार लगाई है ताकि श्रमिकों व व्यवसायों को सहारा दिया जा सके, विशेषकर उन छोटे उद्यमों के लिए जो अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा है या फिर नाज़ुक हालात का सामना कर रहे हैं।

आर्थिक संबल प्रदान करने के लिए रोज़गार पर केंद्रित रणनीति को अहम बताया गया है जिसके लिए मज़बूत रोज़गार नीतियाँ व संस्थाएँ, सुसंपन्न और व्यापक सामाजिक संरक्षण प्रणालियों को ज़रूरी बताया गया है।

साथ ही अंतरराष्ट्रीय समन्वय और स्फूर्ति प्रदान करने वाले पैकेज व क़र्ज़माफ़ी के उपायों से पुनर्बहाली प्रक्रिया को टिकाऊ व प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी। इसे संभव बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों के तहत एक फ़्रेमवर्क तैयार किया जा सकता है।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने कोविड-19 के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था पर मंडराते संकट के बादलों के बीच रोज़गार बचाए रखने के लिए अनेक उपाय सुझाए हैं। यूएन एजेंसी ने कहा है कि अगर सरकारों ने जल्द क़दम उठाए तो कार्यस्थलों पर कर्मचारियों का ख़याल रखने, अर्थव्यवस्था को स्फूर्ति प्रदान करने और लाखों-करोड़ों लोगों का रोज़गार बचाना संभव हो सके।

दुनिया के श्रम बाज़ारों में रोज़गार की ख़राब गुणवत्ता एक बड़ी चुनौती बन कर उभर रही है और लाखों लोगों को विषम परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की एक नई रिपोर्ट में रोज़गार, बेरोज़गारी, उत्पादकता और श्रमिकों की भागीदारी सहित अन्य विषयों पर वैश्विक रूझानों के संबंध में जानकारी सामने आई है।

स्त्रोत: सयुक्त राष्ट्र संघ प्रकाशन सामग्री

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