मेरे वतन की होली-ब्रजेन्द्र
1 min readसड़क किनारे एक आत्मा का बल्ब कहने लगा “होली में अगर बुराई भस्म होती है तो अच्छाई को भी जलना पड़ता है।” आज शाम गहराते ही होली जलने के मुहूर्त पर सियासी हुड़दंग शुरू हो गया। एक तरफ चिंता की लकीरें हैं, तो दूसरी ओर अवसर को हड़पने की चाहत। चिंता सत्ता बचाने की है, लेकिन प्रतीक के तौर पर भाव यह है कि जनमत होलिका के गिरफ्त में है। सत्ता की चाहत और जरूरत में कब्जा न दिखे इसलिए दलील दी गई है “जनता के विश्वास का यह टुकड़ा हमारी गोद मे आ गया, इसलिए कुछ करने की जिम्मेदारी के लिए मजबूर किया गया।”
सियासत की होली में रंगीन छटा का आकर्षण भावपूर्ण दलीलों के लिए बाध्य करता है। जाहिर है जो जलता है वह बताया नही जा सकता, जिसे नहीं जलना चाहिए वह पश्चाताप में भस्म होता है। चूंकि जनमत विश्वास का प्रतीक है, इसलिए उसके प्रति सम्मान दिखाने की विवशता मायाजाल के आकर्षण का प्रकटीकरण मात्र है। आत्मा का जला हुआ बल्ब है, वो झूठ बोलेगा नहीं। वह सड़क किनारे मिला यह नियति है और जिनके लिए बोल रहा था वह उनकी नीयत और नीति है। सियासत की सच्चाई में अच्छाई और बुराई दोनों की मौजूदगी संभावनाएं पैदा करती हैं, यही द्वंद्व जनमत के लिए प्रेरित करता है।
यह सवाल मौजूं है “क्या सियासत का मायाजाल अच्छाई, बुराई के साथ सच्चाई को भी भस्म कर सकता है।” होलिका सार्वजनिक रूप से गली, मोहल्लों, चौराहों में फूंक दी जाती है। लेकिन संवैधानिक मूल्यों को बंद कमरों में जलाया जाता है। वैसे सियासत की होली में अच्छाई और बुराई को जलाने का कोई मुहूर्त तय नहीं होता, वह कभी भी जलाती-बुझाती रहती। अफ़सोस “जनमत का विश्वास” ही बेचारा जलता बुझता रहता है। संयोग से इस बार होली में सूबे की सियासत विश्वास को कैद करने की होड़ में रत है। जबकि हुआ हुआ रटने वाली जनमत की इकाइयां शोर शराबे के बीच खुले में जलने बुझने को मजबूर हैं।
जलने जलाने का यह सियासी मुहूर्त होली के पहले से बना है। यहां बैंकों की रकम स्वाहा हो गईं, शेयर बाजार के निवेशकों की पूंजी भी जल गईं। कच्चे तेल की कीमतें बुझीं तो कोरोना विषाणु से आदमीयत के साथ सुलगते अर्थतंत्र के भभकने का खतरा पैदा हो गया। कमाई जलने से रोटी और शांति भी जल रही है। रोजी रुजगार भी जला पाया गया। लोगों के आकार, प्रकार, विकार, राग और द्वेष जलने की भी अच्छी खबरें मिलीं हैं। मतलब साफ है बुराई नहीं जली तो अच्छाई भी भस्म नहीं होगी और सच्चाई भस्म नहीं की जा सकती ऐसा आत्मा का प्रकाश कहता है।