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समाजसेवा की मिशाल : राजकुमारी अमृत कौर

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आजादी से पहले एक जुझारू स्वतंत्रता सेनानी और आजादी के बाद स्वास्थ्य मंत्री के रूप में देश की बेहतरी में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाली राजकुमारी अमृत कौर उन गिनी चुनी महिलाओं के शामिल हैं जिन्हें टाइम मैगजीन ने दुनिया की 100 ताकतवर महिलाओं में शामिल किया है।

टाइम मैगजीन ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और स्वतंत्रता सेनानी राजकुमारी अमृत कौर को दुनिया की उन 100 ताकतवर महिलाओं में शामिल किया है, जिन्होंने पिछली सदी को नई पहचान दी। टाइम ने कौर को 1947 और इंदिरा गांधी को 1976 की ‘वुमन ऑफ द ईयर’ चुना गया। टाइम ने हाल ही में इन 100 प्रभावशाली महिलाओं की सूची जारी की।

इंडियन रेड क्रास की संस्थापक और 1950 से जीवनपर्यंत इसकी अध्यक्ष रहीं अमृत कौर को लंदन टाइम्स ने सरोजिनी नायडू और विजय लक्ष्मी पंडित के साथ स्वतंत्रता संग्राम की तीन महान सत्याग्रही महिलाओं में शुमार किया था। वह महिला अधिकारों की कट्टर समर्थक थीं और 1926 में उन्होंने ऑल इंडिया महिला कांफ्रेंस की स्थापना की।

अमृत कौर का जन्म 2 फरवरी 1889 को कपूरथला के शाही परिवार में हुआ और उनके परिवार ने उनके जन्म से पहले ही ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। उनकी स्कूली शिक्षा ब्रिटेन के डोरसेट में शेरबोर्न स्कूल में हुई। आगे की पढ़ाई उन्होंने लंदन और ऑक्सफर्ड से की और शिक्षा के नूर ने उनके जे़हन को दुनिया को बेहतर तरीके से समझने और सही दिशा में आगे बढ़ने की समझ दी।

1909 में वह पंजाब में अपने घर वापिस लौटीं और उन्होंने गुलामी की जंजीरों में जकड़े देश की कु्प्रथाओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। बच्चों को अधिक मजबूत और अनुशासित बनाने के लिए उन्होंने स्कूली बच्चों के लिए खेलों की शुरूआत करने पर जोर दिया और बाद में नेशनल स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया की स्थापना करके अपने इरादों को आकार देना शुरू किया। उन्होंने पर्दा प्रथा, बाल विवाह और देवदासी जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ आवाज बुलंद की।

पढ़ाई पूरी करके स्वदेश लौटने के बाद से राजकुमारी अमृत कौर महात्मा गांधी से खासी प्रभावित थीं और 1919 में उनसे मुलाकात से पहले वह लगातार उन्हें पत्र लिखकर उनसे संवाद किया करती थीं। बाद के वर्षों में वह 16 वर्ष तक महात्मा गांधी की सचिव रहीं और उनके सबसे करीबी लोगों में शुमार रहीं। महात्मा गांधी की कट्टर समर्थक होने के नाते उन्होंने ‘नमक आंदोलन’ और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और दोनों बार उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

भारत की आजादी के बाद उन्हें देश का स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया और वह दस बरस तक इस पद पर रहीं। इस दौरान उन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की स्थापना के लिए जी तोड़ प्रयास किया और कई देशों से वित्तीय सहायता प्राप्त करके अंतत: देश की सेहत सुधारने का इंतजाम किया। स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनका योगदान इससे भी कहीं ज्यादा रहा। उन्होंने टयूबरक्लोसिस एसोसिएशन ऑफ इंडिया की स्थापना की, मद्रास में सेंट्रल लेप्रोसी टीचिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट खोला, वह लीग ऑफ रेड क्रास सोसायटीज के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की उपाध्यक्ष और सेंट जोंस एम्बुलेंस एसोसिएशन की कार्यकारिणी की अध्यक्ष रहीं। उनके नाम पर नर्सिंग का एक कॉलेज भी स्थापित किया गया।

रेड क्रास के लिए किए गए उनके कार्यों के चलते उन्हें कई देशों द्वारा सम्मानित किया गया। वह पहली एशियाई महिला थीं, जिन्हें 1950 में वर्ल्ड हैल्थ असेम्बली का अध्यक्ष चुना गया। 1961 में अमृत कौर को समाज सुधार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए प्रतिष्ठित ‘रेने सा मेमोरियल अवार्ड’ प्रदान करके उनके प्रयासों का सम्मान किया गया। देश के स्वतंत्रता संग्राम में और आजादी के बाद घुटनों चलते देश को अपने पैरों पर खड़ा करने में अपना सब कुछ लगा देने वाले राजकुमारी अमृत कौर जैसे बहुत से नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हैं ।

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