क्या दिग्विजय के झांसे में फँस गए कमलनाथ और शिवराज?
1 min readमध्य प्रदेश में सियासी उठापटक, कांग्रेस-बीजेपी में विधायकों को तोड़ने की ‘जंग’
मध्य प्रदेश में सत्ता हासिल करने और बचाय रखने की सियासी उठापटक अभी ख़त्म नहीं हुई है। दही हांड़ी कौन फोड़ेगा इसकी प्रतियोगिता कश्मकश में उलझ चुकी है। सियासी पंडित इन तमाम घटनाक्रमो पर नजर रखते हुए उस स्क्रिप्ट की सम्भावनाओ का अनुमान लगाने की कोशिश में हैं, जहाँ सत्ता के गलियारे में महाबली कौन, का इशारा मिलता हो। पैनी नजर रखने वालों का मानना है कि कमलनाथ सरकार बच गई और राजयसभा का गणित दिग्विजय के पक्ष में आया तो यह माना जा सकता है, जो कुछ हो रहा है उसके जाल में कमलनाथ और शिवराज सिंह फँस चुके हैं।
नई दिल्ली। मप्र के इस सियासी दंगल में कांग्रेस की प्रतिष्ठा तो दांव पर है ही, भाजपा भी छेछालेदर की शिकार हो रही है। ये एक बड़ा सियासी दांव है, जिसे बड़ी सावधानी से अंजाम दिया गया प्रतीत होता है। भाजपा पहले भी कमलनाथ सरकार को अल्पमत में लाकर खुद सत्ता में बैठने के कई बार असफल प्रयास कर चुकी है। उसकी तरफ से यह पहल पूर्व नियोजित की बजाय अचानक की गई ज्यादा लगती हैं। गुड़गांव होटल के घटनाक्रम को महसूस करें तो इसकी संभावनाएं जरूर हैं कि कमलनाथ सरकार के समर्थन में कांग्रेस के कुछ असंतुष्ट विधायकों सहित अन्य के मोहभंग से इस साजिश को सटीक उद्देश्य तक पहुँचाने में बल मिला हो। असंतुष्टों की गतिविधियो को भांपते हुए एक कदम पहले चलकर भाजपा के मंसूबों को सफल न होने देना और कांग्रेस आलाकमान के समक्ष नाथ सरकार बचाने का श्रेय व सहानुभूति हासिल कर लेना।
फोन काल लीक होना रणनीति का हिस्सा!
भोपाल से दिल्ली की उड़ान भरने के दौरान विधायकों में से एक के गनमैन का कहीं मोबाईल करना और फिर विधायकों को बंधक बनाने कि बात का लीक हो जाना। गुड़गांव होटल में दिग्विजय का पहुंचना और फिर सरकार सुरक्षित रहने का बयान देना किसी लिखी गई स्क्रिप्ट जैसा प्रतीत होता है। भाजपा ने इसे बहुप्रतीक्षित अवसर के तौर पर लपक लिया लेकिन इसका अंजाम क्या होगा वह भांपने में असफल रही।
4 विधायक जानबूझकर छोड़े गए!
गुड़गांव होटल से दस विधायकों में छै का वापिस होना और 4 के गायब हो जाने से नाथ सरकार का गिरना संभव नहीं था। क्या 4 विधायकों को जानबूझकर ले जाने के लिए छोड़ा गया यह सवाल अभी अँधेरे में छोड़ा गया तीर भर लगता है। लेकिन जल्द इस बात का खुलासा होना मुश्किल है, क्योकि अफवाहों को फैलाकर स्क्रिप्ट तक पहुँचने की संभावनाएं धूमिल की जा रहीं हैं।
कांग्रेस विधायक का इस्तीफा अंक गणित का उलझाओ
मध्य प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी के बीच जारी विधायकों की खरीद-फरोख्त गुरुवार रात को सियासी युद्ध में बदल गया। शाम को कांग्रेस के एक ‘लापता’ विधायक ने इस्तीफा दे दिया। इसके ठीक बाद बीजेपी के दो विधायक सीएम कमलनाथ के सरकारी आवास पहुंच गए। विधायकों को अपने पाले में लाने के लिए रातभर चली जंग से अब कांग्रेस और बीजेपी दोनों की ही टेंशन शुरू हो गई है। लापता विधायकों के पक्ष में न आने से कमलनाथ सरकार का विधानसभा में संख्या बल गड़बड़ा सकता है, लेकिन भाजपा सरकार बनाने में सफल हो पाएगी इसकी कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं है।
कुछ आला अधिकारीयों की सलिंप्तता
कमलनाथ सरकार को इस बात की सूचना भी मिली कि उनके कुछ आला अधिकारी सरकार गिराने की मुहीम में सक्रीय हैं। नाथ ने अंदेशों को भांपते हुए आनन-फानन में राज्य के डीजीपी वीके सिंह की जगह विवेक जौहरी को नया डीजीपी बना दिया। यह कदम भाजपा समर्थित ब्यूरोक्रेसी में खौफ पैदा करने के तौर पर देखा जा रहा है। एसपी और बीएसपी के विधायकों ने भी कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।उन्होंने कांग्रेस को अपने बयानों पर लगाम लगाने की चेतावनी दी है।
बुखार नाप रहे भाजपा के बड़े नेता
गुरूवार रात को ही बीजेपी नेता शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र सिंह तोमर नई दिल्लीं में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के बीच मुलाकात हुई। भाजपा इस पूरे घटनाक्रम में यह सोचने को विवश हुई है कि कही यह दांव लाभ की चाहत में नुक्सान कि वजह साबित न हो जाये। सियासी पारे की सच्चाई के बीच वह अंकगणित की उन संभावनाओं पर गौर कर रही है, जहाँ उसे राजयसभा की सीटों में फायदा मिल पता है कि नहीं। क्योंकि विधायकों को उस संख्या के स्तर पर तोड़ पाना कठिन हो गया है कि वह कालनाथ साकार को हटाकर खुद सत्ता में आसानी से बैठ सके।
सरकार बचाने के लिए कांग्रेस की रणनीति
कांग्रेस पार्टी ने म प्र सरकार को बचाने के लिए एक फॉर्म्युले पर काम शुरू कर दिया है। इसके तहत उसने जल्द ही मंत्रिमंडल का विस्ता्र करने कि खबर फैला दी है। इसके लिए खुद सीएम कमलनाथ और पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने कमान संभाल रखी है। कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल भी बीजेपी के इस दांव को फेल करने में लग गए हैं। कांग्रेस की रणनीति है कि विधायकों के विश्वास को बनाए रखा जाए और बीजेपी के विधायकों को तोड़ा जाए। कांग्रेस की कोशिश है कि बीजेपी किसी भी तरह से 8 विधायकों को न तोड़ सके। निर्दलीयों से कहा जा रहा है कि वे जो मांगेंगे, उन्हें तत्काल मिलेगा। यही नहीं निर्दलीय विधायकों को मंत्री भी बनाया जा सकता है। संभावना है कि जल्द ही प्रदेश कांग्रेस अध्याक्ष की भी नियुक्ति कर दी जाए जिसके लिए ज्यो तिरादित्या सिंधिया प्रयासरत हैं।
क्या है मध्य प्रदेश की सत्तां का गणित
बता दें कि देश का दिल कहे जाने वाले मध्यस प्रदेश में कुल 230 विधायक हैं। दो सीटें अभी खाली हैं। बहुमत का आंकड़ा 115 है। अभी कांग्रेस के पास 114 विधायक हैं। इसके अलावा 4 निर्दलीय विधायक, 2 बीएसपी (एक पार्टी से निलंबित) और एक एसपी विधायक का भी समर्थन मिला हुआ है। इस तरह कांग्रेस को फिलहाल 121 विधायकों का साथ है। अगर कांग्रेस पार्टी के 8 विधायक इस्तीकफा देते हैं तो उसकी संख्याो घटकर 108 हो जाएगी। वहीं बीजेपी के पास 107 विधायक हैं। बहुमत का आंकड़ा 116 है। बीजेपी के पास अभी 107 विधायक हैं लेकिन अगर नारायण त्रिपाठी और शरद कोल कांग्रेस में शामिल हो जाते हैं तो भगवा पार्टी के केवल 105 विधायक रह जाएंगे। इस तरह कांग्रेस के 106 विधायक और बीजेपी के 105 विधायक हो जाएंगे।