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क्या राष्ट्र का कोई बाप दादा होता है या यह किसी के प्रति सम्मान की पराकाष्ठा मात्र

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देश दुनिया में महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया जाता है। यह हमेशा से बहस का मुद्दा रहा है, खासतौर से उनके बीच जो गाँधी से अगाध प्रेम के साथ साथ उनके प्रति अति विशिष्ठ सम्मान की आकांक्षा रखते हैं और एक वे जो गांधी को एक खलनायक की भूमिका में रेखांकित करते आये हैं। ऐसी बहसों के औपचारिक परिणाम पर पहुंचें तो दोनों पक्षों के विचार ख़ारिज करने योग्य है। वो इसलिए क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 18(1) राष्ट्रपिता जैसे किसी भी शीर्षक की अनुमति नहीं देता। ऐतिहासिक घटनाक्रमों की चर्चा करें तो गाँधी के सामने पहली बार किसी के द्वारा राष्ट्रपिता कहा गया तो उन्होंने स्वयं ही इसे सिरे से नकार दिया था।

नई दिल्ली। अनिल दत्त शर्मा द्वारा दायर महात्मा गाँधी से जुडी एक जनहित याचिका की हाल ही में सुनवाई करते हुए, मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने कहा था, “महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहना लोगों का उनके प्रति उच्च सम्मान की अभिव्यक्ति है, इसे किसी औपचारिक मान्यता में रखकर नहीं देखा जाना चाहिए। पीठ ने याचिका में महात्मा गांधी के नाम पर ’भारत रत्न’ ’प्रदान करने की मांग पर विचार करने से इनकार करते हुए यह बात कही थी।

गाँधी के राष्ट्रपिता के दर्जा को लेकर भारत सरकार के समक्ष अनेक बार आरटीआई लगाईं गईं और हर बार जवाब में यही कहा गया कि औपचारिक रूप से ऐसे किसी भी दस्तावेज की कोई सूचना नहीं है। उत्तर प्रदेश के हाथरस निवासी गौरव अग्रवाल द्वारा भी इसी मसले पर एक आरटीआई प्रस्तुत की गई। जवाब में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने गौरव अग्रवाल को सूचित किया कि भारत सरकार के पास ऐसे कोई भी दस्तावेज, न ही ऐसा कोई नियम या अध्यादेश कि कोई जानकारी उपलब्ध है। जिसमे यह कहा गया हो कि महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता कहकर सम्भोधित किया जाये।

उल्लेखनीय है कि इसके पूर्व 2012 में लखनऊ निवासी कक्षा छठवीं की छात्रा ऐश्वर्या पराशर ने भी गांधीजी के इस सम्मान को लेकर आरटीआई प्रस्तुत की थी व् इस आशय कि जानकारी के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह को लिखा भी था। तब गृह मंत्रालय ने जवाब में कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 18(1) राष्ट्रपिता जैसे किसी भी शीर्षक की अनुमति नहीं देता। वही हाल ही में ऐसा जवाब मांगने वाले हाथरस के अनिल अग्रवाल ने बताया का उनका उद्देश्य लोगों के बीच महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता कहे जाने की जानकारी स्पष्ट करना था।

 

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