Thu. Apr 25th, 2024

पीएम मोदी का सोशल मीडिया छोड़ने का विचार सात समुन्दर पार को नसीहत है !

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  • ब्रजेन्द्र द्विवेदी

भारतवर्ष के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की सोशल मीडिया छोड़ने के विचार को कोई साधारण घटनाक्रम के तौर पर नहीं लिया जा सकता। विदेशी मीडिया खासतौर से अमरीकी व ब्रितानिया मीडिया द्वारा मोदी सरकार के खिलाफ छेड़ा गया अभियान शायद इसकी मूल वजह में है। मोदी 2.0 के बाद लिए गए बड़े फैसलों के बाद वाशिंगटन पोस्ट, न्यूयार्क टाइम्स सहित अमेरिका-ब्रिटेन के तमाम मीडिया हाउस द्वारा सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए मोदी सरकार के खिलाफ आलोचनात्मक से ज्यादा घृणात्मक माहौल पैदा करने के प्रयास किये गए। दिल्ली हिंसा को लेकर इस अभियान से इस बात की पुष्टि फेक तौर पर न्यूज, फोटो और वीडियो को सोशल मीडिया में वायरल किये जाने से हुआ है।

यह पश्चमी मीडिया का सुनुयोजित षड़यंत्र भी है, जिसमेँ राजनयिकों की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। क्या इस बात को अनदेखा किया जा सकता है कि विश्व राजनीति के शक्ति सम्पन्न देश खुद का दबदबा बनाने के लिए किस तरह गन्दा खेलते आये है। समृद्ध पश्चिमी देशों की यह फितरत हर दौर में बढ़ते विकासशील देशों के लिए नफ़रत की वजह देखी और महसूस की गई है। सोशल मीडिया कंपनियों का सबकुछ भी इनके सीधे पहुँच और जुरिडिक्शन में होने से इस बात पर भरोसा क्यों न किया जाये कि उन पर पश्चिमी देशों की इन्ही ताकतों का दबाव होगा। ये ताकतें न केवल भारत के बढ़ते बाजार का फायदा उठाना चाहतीं हैं बल्कि भारत की राजनितिक ताकत को सीमित दायरे तक समेटने की मंशा भी रखतीं हैं।

  • इस अभियान के कुछ प्रमाण
    पीएम मोदी के ट्वीट के एक दिन पहले ब्रिटिश एमपी लॉर्ड नज़ीर अहमद ने पाकिस्तान का पुराना वीडियो ट्वीट करके कहा कि दिल्ली में मुसलमानों को मारा जा रहा है। लाखों लोगों ने उस ट्वीट को रिपोर्ट किया। लेकिन ट्विटर ने कई घंटे तक उसे नहीं हटाया। लॉर्ड नज़ीर अहमद ने इसके बाद एक और ट्वीट किया कि दिल्ली दंगे में 4000 मुसलमान मारे गए हैं। ट्विटर ने ये ट्वीट भी नहीं हटाया।
  • -वॉल स्ट्रीट जर्नल ने हिंदुओं के हाथों अंकित शर्मा की हत्या की फ़र्ज़ी ख़बर छापी। लोगों ने ट्विटर और फेसबुक से कहा कि वो #FakeNews पॉलिसी के तहत इसे हटा ले लेकिन दोनों ने नहीं हटाया।
  • भारत में भी मीडिया के एक वर्ग ने दिल्ली दंगों पर फ़र्ज़ी ख़बरों की बाढ़ लगा दी। हिंसा की तस्वीरें छापीं। लेकिन ट्विटर और फ़ेसबुक ने एक को भी न तो मास्क किया और न ही हटाया। कई बड़े-बड़े पत्रकारों ने उन्हीं फ़र्ज़ी ख़बरों के लिंक जमकर शेयर करके ख़ुद को सेकुलर साबित किया।
  • ट्विटर और फ़ेसबुक के इन प्रयासों से महसूस हुआ किया गया कि देश में दंगे भड़क उठें और गृहयुद्ध के हालात पैदा हो जाएँ। यह भी प्रतीत हुआ भारत में फ़ेसबुक और ट्विटर के दफ़्तर इस तरह की सोच भरे पड़े हैं। इसे भी स्वीकार करना पड़ेगा की लंबे समय तक ट्विटर का इंडिया हेड एक ऐसा जिहादी था जो हिंदुओं और भारत को गालियाँ देता था।

मोदी के फालोवर करोड़ों में
यह भी भली भांति स्पष्ट है कि सोशल मीडिया की सभी कंपनियां अमेरिका में बैठी हैं और इस फैक अभियान में उसका इस्तेमाल किये जाने के बावजूद मूक समर्थक बनी हुईं हैं। वो यह भूल रहीं हैं कि भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के ट्विटर हैंडल @narendramodi को 5 करोड़ 33 लाख से भी ज़्यादा लोग फ़ॉलो करते हैं। फ़ेसबुक पर मोदी के एकाउंट को चार करोड़ 47 लाख से भी ज़्यादा लोग फ़ॉलो करते हैं जबकि उनके इंस्टाग्राम एकाउंट को तीन करोड़ 52 लाख लोग फ़ॉलो करते हैं। यूट्यूब पर भी मोदी की लोकप्रियता कम नहीं है, यहां भी चार करोड़ 51 लाख लोगों ने मोदी के यूट्यूब एकाउंट को सब्सक्राइव कर रखा है। यह इस बात का इशारा है कि भले अमेरिका में सोशल मीडिया के यूज़र्स भारत से ज्यादा हैं, लेकिन अमेरिका से बाहर भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जो सोशल मीडिया का सबसे बड़ा बाजार है।

अमेरिका के बाद भारत में सबसे ज्यादा यूजर्स
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के इंटरनेट इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार भारत में इंटरनेट के बढ़ते प्रसार और युवाओं की बड़ी आबादी के बल पर विश्व की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक ने भारत में अपना तेजी से विस्तार किया है और अब देश में उसके 11.2 करोड़ यूजर्स हैं, जो अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा हैं। साल 2019 के अप्रैल में भारत में फेसबुक के 10 करोड़ यूजर्स थे और सितंबर के अंत तक मासिक सक्रिय यूजर्स की संख्या बढ़कर 11.2 करोड़ पहुंच गई है, वहीं दैनिक सक्रिय उपयोक्ताओं की संख्या भारत में 5.2 करोड़ है। वैश्विक स्तर पर कंपनी के 1.35 अरब उपयोक्ता हैं, जबकि दैनिक सक्रिय उपयोक्ता 86.4 करोड़ हैं। यदि इसी रिपोर्ट को देखें तो भारत में इंटरनेट यूजर्स की संख्या 70 करोड़ को पार करने वाली है। इशारा साफ है कि आने वाले वर्षों में सोशल मीडिया यूज़र्स की संख्या में भारत, अमेरिका को पीछे छोड़कर अपने बाजार का आकार बढ़ाता जायेगा।

व्यापार की चाहत बदले में घृणा
दरअसल सोशल मीडिया छोड़ने के विचार के पीछे प्रधानमन्त्री की पीड़ा भी निहित है जिसका भाव यह है कि तुम्हे भारत से व्यापार भी करना है और यह भी समझते हो कि यह देश तुम्हारी सोशल मीडिया का बड़ा बाजार है, जो अपना आकार निरंतर बढ़ाता जा रहा हैं। इसके बावजूद तुम अपने प्लेटफार्म का उपयोग फेक बातों के लिए करवाए जा रहे हो और फेक घटनाओं को रोकने की प्रतिबद्धता का भी ढोंग करते हो। ये दोनों बातें साथ साथ कैसे चल सकती हैं। उल्लेखनीय हैं कि अमेरिकी मीडिया ने दिल्ली हिंसा को लेकर देश के बाहर की घटनाओं के फोटो, वीडियो का भारत में सोशल मीडिया के जरिये फेक इस्तेमाल किया गया।

शांति के प्रयासों में खलल डालना
दिल्ली हिंसा को लेकर अमेरिकी मीडिया द्वारा सोशल मीडिया का फेक इस्तेमाल किया जाने से जलती हुई राजधानी को ठंडा करने के प्रयासों में बाधा को स्पष्तः महसूस किया गया। भारत के खिलाफ प्रयोग किये गए इन तौर तरीको पर भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर लगातार आगाह किया गया, जिसका असर न होते देख प्रधानमन्त्री को यह कहने के लिए विवश होना पड़ा।

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