भरोसे की भैंस-संजीव पांडेय
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राजा हरिश्चन्द्र और मुख्यमंत्री केजरीवाल में कोई खास अंतर नही है। दोनो दानी ज्ञानी जीव है …सत्यवादी हरिश्चंद्र ने सिद्धान्त बचाकर सब कुछ लुटा दिया था, केजरीवाल ने सिंद्धांत लुटा कर सब कुछ बचा लिया।
परिणाम वही है। सिर्फ मोक्ष का मार्ग बदल गया है। दोनो महान विभूतियों को बनारस में यातनॉए मिल चुकी है। इन यातनाओं का वर्णन फिर कभी करुगा। अभी भरोसे की भैंस का जिक्र करना चाहता हूँ।
दिल्ली जल रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की कोई जिम्मेदारी नही है! देश में जब पूरे अवतार की सरकार दिल्ली लुटने की जिम्मेदारी नही लेते दिखती, तो शिखंडी सरकार ये जिम्मेदारी भला क्यों ले? मेरा आशय है, जो सरकार खुद को मुकम्मल ही नही मानती हो।
अलबत्ता जो किया वो राष्ट्रप्रेम अद्भुद मिसाल है। उसने अन्तोगत्वा कन्हैया कुमार पर राजद्रोह के मुकदमे की मंजूरी दे दी है।
पिछले चुनाव में जो स्वाद कसैला था, अब उसका जायका बदल गया। इस भरोसे की भैंस से कन्हैया कुमार चित हो गए। उन्हें भरोसा था कि केजरीवाल देशद्रोह के मामले में उनका पक्ष लेगे, लेकिन चुनाव के बाद एक झटके में दानवीर ने घुटने टेक दिये।
अब उनकी भाषा सरकारी बाबू जैसी हो गई है। जो सिर्फ सेवा की माला जपा करता है। जब कोई जनकल्याण में रम जाया करता है , वो स्वम् को धरती का सबसे निरपेक्ष जीव मान कर चलता है। इस निरपेक्षता में उसकी आत्मा स्वर्गलोक पधार जाती है। दिल्ली के मुख्यमंत्री की दशा ठीक इसी प्रकार से दिख लायी पड़ती है।
जब दिल्ली जल रही है, कोई इसे हवन की आग समझकर चुप कैसे रह सकता है ? फिर चाहे आप अर्द्ध काया या माया की सरकार हो?
सवाल जो दब गया कि आधी अधूरी सरकार में बैठते ही पूरी आत्मा क्यों मर गई? लेकिन बेचारे कन्हैया कुमार ने भरोसा किया तो किस पर? जो भैस पडा बिया गई……।