Sat. Apr 20th, 2024

सियासी मौसम विज्ञान: सीट बटवारे के पहले एलजेपी तैयार कर रही घोषणा पत्र

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  • बिहार विधानसभा चुनाव को अभी छै महीने बाकि है। लेकिन भाजपा से सीट बटवारे के पहले ही एलजेपी ने अपना सियासी मौसम विज्ञान का नया पैंतरा आजमाने की तैयारी शुरू कर दी है। एलजेपी अपना घोषणा पत्र जारी करने की तैयारी कर रही है। कहा जा रहा है कि एलजेपी का घोषणा पत्र 12 अप्रैल तक आ जाएगा। सियासी हलकों में सीट बंटवारे से पहले इस दांव के मतलब निकालने भी शुरू हो गए हैं ।

पटना। अक्टूकबर में होने जा रहे बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए राजनीतिक दलों की ओर से रणनीति बनाने की तैयारियां तेज हो गई हैं। लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) की ओर से ऐलान किया गया है कि 12 अप्रैल तक मेनिफेस्टो जारी कर दिया जाएगा। मतलब यह कि चुनाव के तकरीबन 6 महीने पहले एलजेपी अपना घोषणा पत्र ले आएगी। हालांकि, एलजेपी के इस दांव के साथ कई सवाल खड़े हो गए हैं। सवाल यह कि सीट बंटवारे से पहले इस कदम का मतलब क्या है। क्या यह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से अलग होने का संकेत है या बिहार की राजनीति में खुद को एक प्रमुख चेहरा बनाने की कवायद का हिस्सा है।

राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का मानना है कि, चिराग पासवान किसी भी कीमत पर एनडीए का साथ नहीं छोड़ने वाले। दरअसल, एलजेपी का जो बीजेपी के साथ गठबंधन हुआ, उसके पीछे की भी अलग कहानी है। रामविलास पासवान का पूरा जोर समाजवादी आंदोलन के साथ था। उनके अंदर बीजेपी में जाने को लेकर झिझक थी लेकिन पुत्र चिराग पस्स्वन के दबाव में वह एनडीए में शामिल हुए।

एनडीए से दूर जाने का साहस नहीं-शिवानंद
राष्ट्रीय जनता दल के उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी सार्वजानिक रूप से कहते रहे हैं कि, रामविलास तकरीबन रिटायर हो रहे हैं और चिराग ने पार्टी में उनकी जगह ले ली है। इस वजह से यह सबकुछ अतिउत्साह में करेगा। इसमें इतना साहस नहीं कि यह एनडीए से अलग हो जाए। बाकी इस फैसले में मुझे तो कोई दूर की सोच नहीं नजर आ रही है।’

‘पिता के रिटायरमेंट से पहले सत्ता ट्रांसफर’
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार शैलेंद्र दीक्षित कहते हैं, ‘हर आदमी की कोशिश है कि हमको एनडीए अलायंस में ज्यादा सीटें मिलें। अभी तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ही चेहरे पर चुनाव की बात हो रही है। नीतीश कुमार के कद को देखते हुए जाहिर है कि उनकी पार्टी को ज्यादा सीटें मिलेंगी। ऐसे में एनडीए की घटक लोक जनशक्ति पार्टी भी पीछे नहीं रहना चाहती है। केंद्रीयमंत्री राम विलास पासवान की एक तो उम्र काफी हो गई है, दूसरा उनका स्वास्थ्य भी व्यापक दौरों की इजाजत नहीं देता है। ऐसे में चिराग पासवान पर ही पार्टी का दारोमदार है।’

 

पकड़ बनाने की जुगत में चिराग
रामविलास पासवान के भरोसेमंद लोगों के सहारे वह पार्टी के संगठन पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में हैं। यह अलग बात है कि इस समय रामविलास के भाई पशुपति कुमार पारस की पार्टी में वह हैसियत नहीं रही जो पहले थी। दूसरे भाई रामचंद्र पासवान के निधन के बाद समस्तीपुर सीट खाली हो गई थी। इस पर रामचंद्र पासवान के बेटे प्रिंस राज को प्रत्याशी बनाया गया था, जिसके बाद उन्होंने जीत भी दर्ज की। पुराने लोग पशुपति कुमार को महत्व देने से कतराने लगे हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि उनकी वह हैसियत नहीं रही, जो रामविलास पासवान के चलते थी। चिराग पासवान जिलों का दौरा कर संगठन खड़ा कर युवाओं को जोड़ने की कोशिश में हैं।’

‘तेजस्वी की राह पर चिराग?’
क्या यह तेजस्वी की तर्ज पर बिहार में खुद को बड़ा राजनीतिक चेहरा बनाने की कोशिश है? इस पर शैलेंद्र दीक्षित ने कहा, ‘तेजस्वी यादव भले ही कोई भी फैसला लेते हों लेकिन उसके पीछे अंतिम फैसला लालू प्रसाद यादव का होता है। हां, तेजस्वी को बदलना होगा क्योंकि यहां उनका जनाधार बड़ा है। बाकी लालू प्रसाद का ‘MY’ यानी मुस्लिम-यादव समीकरण जब गड़बड़ हो रहा था तो इन्होंने पार्टी का प्रेजिडेंट अगड़ी जाति के जगदानंद सिंह को बना दिया मतलब इन्होंने चेहरा बदलने की कोशिश की। हालांकि, चेहरा बदला जरूर है लेकिन पार्टी अभी पुराने लोगों के हाथों में ही है।’

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