Tue. Apr 23rd, 2024

बेर के ढेर – संजीव पांडेय

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रोज की तरह बोरे के बिछावने पर बेर के दस ढेर लगे हुए थे और उतने ही शब्द थे जो ढेर के बिकने के साथ बारी बारी खत्म हो जाते है। यह सिलसिला कई सालों से दोहराव के चक्र में फंस था।
“बाबू जी एक ढेर दस रुपये का है” पर आज अंजली के पास कहने को कुछ अधिक शब्द थे।
अंजली, एक पतली चद्दर को ओढे दिलासा पाले है कि उसने ठंड से बचने के सारे इंतजाम कर लिए है लेकिन सर्द से उसकी कमर टूटी जा रही है। वह शरीर को जितना मोड़ सकती है उस दिशा में उसकी कोशिशें जारी है। दिसम्बर माह का दिन है, सुबह के 8 बजे का समय है। कोहरे की परत से आसमान ढका है। लकवा मार देने वाला जाड़ा शरीर को चीरे जा रहा है।

“क्यू रे, बेर कैसे दिए? युवती ने अंजली प्रश्न किया।
आज के दिन की बोहनी है मेंम साब, जो जी में हो, दे दो।
“ये बेर तो बासी है” कहते हुए युवती ने पांच रुपये बढ़ा दिए ।
अंजली पॉलीथिन में बेर का ढेर भरने लगी लेकिन उसकी आँखे युवती के साथ आये छोटे बच्चे पर टिकी थी ।
“मेम साब, मेरा बेटा था तो इससे भी अच्छे बेर मैं बेचती थी, दो दिन पहले वह मर गया।
ठीक है , अच्छे से भरो।
जी मेंम साहब। अंजली ने बेर को देखते हुए आगे बात बढाई। “वह बेर तोड़ते पेड़ से गिर गया था।”
हा, हा ठीक है। युवती ने पॉलीथिन में बेर लिया और बच्चे के साथ मुड़ कर चली गई।

अंजली ने पास बैठे कालऊ की ओर देखा और उसको उठ कर दूर बैठने का इशारा किया। एक कुत्ता ही है जो पूरे वक्त साया की तरह उसके साथ साथ रहा करता है। जब अंजली शाम को घर लौटती है तो ही उसका चूल्हा जलता। दो रोटी कलाऊ को भी मिल जाती।
शीत लहर का दौर अभी थमा नही था।
अंजली ने एक बार आसमान निहारा और फिर पैर को मोड़ने लगी। चलती सड़क पर अवरुद्ध उसके मन को कोई सुनने को तैयार नही है। आज उसके पास कहने को काफी कुछ था कि उसका बच्चा दो दिन पहले कैसे मर गया।

अंजली बेर को देखे जा रही थी। उसके आखों के सामने उसका बचपन तैर रहा था। जब वह पांच साल की थी तब से इस बेर के साथ उसकी स्मृतियां जुड़ी हुई है। उसका बाप जंगल से लौटकर आता तो अपने सर ढकने के कपड़ो में इन बेरों को भर लाता। अंजली को बाप के साथ इन बेरो का इंतजार बना रहता। अपने बाप के घर अंजली बेरो को पाकर मचल उठती, जैसे कायनात ही पा ली हो उसने। फिर अंजली 15 साल की हुई गांव में उसकी शादी हो गई। शादी के आठ साल में उसको एक लड़का हुआ। गांव की गरीबी से तंग आ कर उसका पति शहर में मजदूरी को निकल गया। फिर एक दिन एक सरकारी तार आया कि उसका पति इमारत से गिर मर गया ।
तब से घर मे अंजली अपने बेटे और पालतू कुत्ते का पेट “बेर के ढेर” बेच कर भरती आयी है।

वो इस ख्याल में डूबी ही थी कि नवजवान का समूह उसके पास आ कर रुका। समूह के नाटे और कूबड़ निकले लड़के ने बड़ी कर्कश आवाज में पूछा , “बड़े बड़े बेर को कितने में देगी।”
बीस रुपये में इन सारे ढेरो के बड़े बड़े बेर हमें दे दे। वैसे भी तूने जंगल से बटोरे होंगे।

अंजली के हलक से आवाज नही निकली, उसने सिर हिला कर लड़को को बेर भर लेने की सहमति जता दी।
लड़को ने जाते जाते पंदह रुपये फेक दिया और कहा कि बस इतना ही बनता है।
अंजली ने उनको बताना शुरू किया कि इन बेरो को तोड़ते समय उसका बेटा पेड़ से गिर गया ……कैसे अस्पताल वालो ने मामूली चोट कह कर उसे घर भेज दिया…… रात में उसकी तबियत ज्यादा बिगड़….

बकवास मत कर… इतना कह कर लड़के वहां से चले गए।
अंजली सोच रही थी कि इन बासी बेरो को वह फेक भी तो नही सकती। इन बेरो के लिए ही तो उसने अपना लड़का खोया है।

आज इतनी भी रकम नही आई कि कलाऊ और अंजली के पेट भरने लायक आटा खरीद ले। रात के चूल्हे पर उसे बीती सारी बाते याद आ रही थी कि कैसे उसका बेटा अपनी माँ से चोरी चोरी अपनी रोटी कुत्ते को खिला देता। आज उसके बेटे की आखिरी कमाई है । उसने पूरी रोटियां कुत्तो को खिलकर पास चार पाई पर लेटे कुत्ते को निहारते सोने लगी।

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