Sat. Apr 20th, 2024

संविधान में सीमा रेखाएं

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संविधान में सीमा रेखाएं

संविधान में हर एक महत्वपूर्ण संस्था और उसके पद पर बैठने वाले व्यक्ति की सीमा रेखाएं खींची गईं हैं। परिस्थितिवश पैदा हुए हालातों में व्यवस्था देने के लिए संसदीय मर्यादाओं के मद्देनजर नैतिकबोध और विवेक इस्तेमाल करने की सुविधा है। राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद की गरिमा इसी तरह के बोध से स्व स्फूर्त रह सके यह अपेक्षा लोकतांत्रिक राज्य और गणराज्य की अवधारणा को मजबूत करती है। महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ, उसने राज्यपाल के विवेक को खाकर यह अट्टहास किया हैकि वह संविधानिक अधिकारों की ताकत हसिलकर उन अधिकारों के साथ किस कदर दुराचार कर सकता है।

राज्यों में सरकारों के गठन को लेकर हर एक परिस्थिति के दौरान राज्यपाल के पास अधिकार और नैतिकबोध के प्रयोग की मिसालें मौजूद हैं। समय समय पर सर्वोच्च न्यायालय भी व्यवस्था देने के बोध की याद दिलाता आया है। कोई स्वयं-भू सर्वशक्तिमान प्रमाणित करने के लिए राज्य की संप्रभुता को चुनौती कैसे दे सकता है? यदि देश के शीर्ष पदों पर बैठे राजनेता कुटिलता में एक दूसरे के अधिकारों को रौंदेंगे तो यह एक संविधानिक संकट की स्थिति है। राज्यपाल कोश्यारी को अपनी भूमिका पर सफाई तो देनी ही होगी। दरअसल इन हालातों में उनके पद पर बने रहने का नैतिक आधार बचा ही नही है, वो अपनी मान मर्दन करवाकर राजभवन में मौजूद हैं तो इसका सीधा मतलब हैकि वह संविधान के अनुसार नही बल्कि एक राजनीतिक दल के असंवैधानिक फैसले को ही मूर्त रूप दे रहे है।

यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि राष्ट्रपति को राज्य में राष्ट्रपति शासन को बहाल करने के लिए पीएमओ की सूचना पर या मंत्रिमंडल की सिफारिश पर फैसला लेना चाहिए। महाराष्ट्र का घटनाक्रम इतना फौरी था कि यह सब रात के कुछ घंटों में ही हो गया। सुबह होने के कुछ घण्टे के अंदर सीएम और डिप्टी सीएम शपथ लेकर हाथ हिलाते फ़ोटो खिंचवा रहे थे। देश से आंखे चुराकर यह कांड करने की प्रवृत्ति को जायज कैसे ठहराया जा सकता है। राज्यपाल को ऐसा कौन सा दिव्य ज्ञान हो गया कि शपथ लेने वाले दल के मुखिया बहुमत साबित कर लेंगे।

 

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